मंगलवार, 5 मार्च 2019

रुके थे सरे राह

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रुके थे सरे राह 
चलते-चलते 
तुम्हारा मेरे पीछे होने का भरम पाले 

आखिर तक भरम बना रहा 
आखिर 
कठोर चट्टान की तरह मेरा विश्वास था तुमपर 

अब 
उमर बीत गयी 
मंजिल निकल गयी 
हाथ से 

और तुम भी गुजर गये हो 
मेरे बहुत पास से 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 4 मार्च 2019

बगैर तुम्हारे

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ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

बगैर तुम्हारे 
हवा में शोख़ी नही 
मदिरा मदहोश करती नही 

चुभती हैं बातें
बातें जो दिल से निकलती नहीं 

ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

गीत - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 3 मार्च 2019

तेरे बिना

मेरे बिना 
तुम तड़पती होंगी न 
बिन पानी के मछली की तरह 

मेरे बिना 
भटकती होंगी न तुम 
कस्तूरी को ढूढ़ते
हिरन की तरह 

तेरे बिना 
पेड़ से गिरा पत्ता हो गया हूँ 
समय की हवा चाहे जिस ओर ले जायें

तेरे बिना 
बिन मांझी के नाँव हो गयी हैं जिन्दगी 
चाहे जिधर पौरती जायें

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 2 मार्च 2019

प्रणय मेरा अभिशाप बना

प्रणय मेरा अभिशाप बना 

ना जी ही पाता हूँ 
ना मर ही पाता हूँ 
ठीक से 

लाख कोशिशों के बावजूद 
मैं इससे मुक्त भी नही हो पाया हूँ 

गोधूली बेला में 
वह पायल छनकाती 
रातरानी की ख़ुशबू उड़ाती
आ ही जाती हैं 
मेरे कमरे में 

उसकी शीतल स्पर्श के बावजूद 
आग धधकती रहती हैं 
तन-मन में 

खाबो-ख्यालो से ढका मेरा जीवन 
बस उसकी ही गोद में अंतिम सांस लेना चाहता हैं 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

उन्हें देखकर

उन्हें देखकर यूं लगा 
मुद्दत बाद करार मिल गया 

वादी में 
भुला-बिसरा नगमा मोहब्बत का गूंज गया 

मुझे याद हैं 
कबके मिले कबके बिछड़े हैं हम 

उनसे मिलते 
उम्र तमाम मिल गया 

रेखाचित्र व गजल - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

जबसे मैं तुमसे बिछड़ गया

तुम बिल्कुल नही बदली 
वही ढंग मुस्कुराने का 
वही संगदिली रखती हो तुम अबभी 

अबभी परायेपन का आग नही सुलगा 
तुम्हारे अंदर 
जानता हूँ 
तुम्हारे साथ क्या कुछ नही गुजरी हैं 

अबभी तबियत खराब रहती होंगी न तुम्हारी 
फिरभी जिन्दगी को खुलकर जीती हो 
इतनी कि किसीको भनक तक न लगे 
कि तुम्हें कितना दर्द होता हैं 
जबसे मैं तुमसे बिछड़ गया 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

विसर्जित कर आया मैं

विसर्जित कर आया मैं 
तेरा दिया सबकुछ 

लाखो बार 
देखने पर 
देख लिया करते थे 
बेमन ही 
एक-दो बार 

वो नजर 

तुम्हें पाने की चाहत धरे 
जेब में रूपए-पैसे की तरह 
भटकते वहाँ
जहाँ एक्का-दुक्का ही गये होंगे तुम 

वो आवारगी

मुझसे बोलने-बतियाने के लिए 
तुम्हें फुर्सत कब थी 
जबकि मेरी पूरी जिन्दगी प्यार की 
फुर्सत से तुम्हें सोचने 
सराहने में गुजरी हैं 

वो फुर्सत 

तालाब पर 
जैसे कागज की नाँव तैर रही हो 
हजारो बातें सोच-सोचकर
लिखा करता था 
आधी रात में 
तुम्हारे अनुपस्थिति में 
अपने गहरे एकांकीपन में 

वो प्रेम-पत्र 

सोचता था 
किसीदिन यु भी होंगा 
तुम्हारी नजर प्यार से उठेंगी मेरी तरफ 
पंछी के तरह फडफडाते हुए 
आ लिपटोगी 
मेरे सीने से 

वो सोच 

विसर्जित कर आया मैं 
वो सबकुछ 
जिसका न होना 
तय था 
बहुत पहले से 

वो होने न होने की वजह 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...