प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
मंगलवार, 30 अप्रैल 2019
सोमवार, 29 अप्रैल 2019
रविवार, 28 अप्रैल 2019
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019
बुधवार, 24 अप्रैल 2019
सोमवार, 22 अप्रैल 2019
हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है
तुम्हें जान कहते थे हम अपनी
मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर
भी
बेघर हूँ
सारा संसार अपनापन दिखाता था
जब पहले-पहल हम मिले थे
गीत नुसरत फतेह अली खान का
और चित्र राजा रवि वर्मा का
सुना
देखा
सराहा करते थे
अब बात और है
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."
चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
रविवार, 21 अप्रैल 2019
आदमी अकेले जीना नही चाहता
आदमी अकेले आता है
और अकेले जाता है
लेकिन अकेले जीना नही चाहता
ना जाने क्यों !
वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का
और खुद ही फँसता जाता है
उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है
उतना ही उलझता जाता है
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019
मंगलवार, 16 अप्रैल 2019
शनिवार, 13 अप्रैल 2019
धर्म, ईश्वर और धर्मउपदेशक
धर्म
धर्म दो धारी तलवार है !
अन्धानुसरण भी बुरा है
और उपेक्षित मन से इसे देखना भी बुरा है
किन्तु गला तो दोनों ही सुरत में कटना है
ईश्वर
कोई मुझसे एकदिन पूछ बैठा
तुम नास्तिक हो कि आस्तिक !
..मन्दिर तो तुम जाते हो लेकिन पूजा-पाठ नही करते क्यों !
मैंने कई तर्क दिए यथा मुझे दूसरे के आस्था की परवाह है इसलिए मन्दिर जाता हूँ..
लेकिन मुझे ईश्वर पर उतना विश्वास नही
जितना होना चाहिए..
दरअसल, आजतक मैंने किसीको नही सुना
यह कहते हुए कि
ईश्वर है !
यह कहते हुए जरुर सुना है कि
ईश्वर है मगर नजर नही आता हरकिसीको !
धर्मउपदेशक
धर्मउपदेशक धर्म की व्याख्या मनमानी करते है
और ईश्वर की प्रशंसा करते नही थकते
लेकिन उनको मेरा सुझाव है कि
धर्म को कर्म से मिलाये
और धर्म को धर्म ही बनाये रखने की कोशिश करे
न कि व्यवसाय !
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
मुझे नही मरना था
मुझे नही मरना था
घुट-घुटकर
मुझे जीना था तेरे प्यार में भी
जी खोलकर
मगर
तूने आहिस्ता-आहिस्ता खंजर भोका
मेरे उसी हृदय में
जिसमे प्रेम के पुष्प खिल चुके थे
सिर्फ और सिर्फ तुम्हें
महक सुंघाने के लिए
मैं गवार था
मगर उतना भी नही कि
नजरों से गिराकर अपने
मेरा जीना दुश्वार किए
( समझ न सकू )
फिरभी मैं चुप रहा
जबकि मैं चुप रहनेवालो में से नही हूँ
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
गुरुवार, 11 अप्रैल 2019
जीने दो मुझे
जीने दो मुझे
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ
खाने को भोजन नहीं मिलता
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ
आसमान का छत
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है
गर्मीवाली रातों में
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें
तन , मन को काट, बाँट देती है
खुली हवा में
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बुधवार, 10 अप्रैल 2019
मंगलवार, 9 अप्रैल 2019
मुझे तेरी चाहत की कसम
मुझे तेरी चाहत की कसम
जबतक जिऊंगा
तुम्हारे इश्क़ में जिऊंगा
मुझे किसकी परवाह किसकी फ़िक्र
जबतक ना मौत आये
तुम्हे अपने सीने से लगाने के लिए
तकदीर से लडूंगा
मानांकि
मेरा कोई हक नही बनता तुमपर
पर तुम्हे छोड़ दू
ये सोचकर
कि मेरे गैर तुम्हारे अपने तुम्हारा ख्याल रखेंगे
ऐसी बातों पर मुझे विश्वास नही तनिक
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
सोमवार, 8 अप्रैल 2019
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
इन कजरारी आँखों ने - 1
बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने
पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे
पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं इनमे
मुझे दीखते
मुझे दीखते
ये तुम्हारी कजरारी आँखें
जंगल में लगी आग की तरह
फैलाती है
बेचैनी
मुझमें
मैं कहाँ चला जाऊ
कि इनसे सामना ना हो कभी
यही सोचता रहता हूँ ..
समझ से परे है यारों को भी समझा पाना
कि डाकूओं की टोली आती हो जैसे
दिन-दहाड़े
मुझे लूटने
हाँ, तुम्हारी ही ये कजरारी आँखें !
जबकि मेरे पास कुछ भी नही बचा
फिरभी
-रवीन्द्र भारद्वाज
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
गुरुवार, 4 अप्रैल 2019
बुधवार, 3 अप्रैल 2019
जरूरी था
जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते
राज जो दिल में दबा रखा था हमने
जरूरी था उसका खुलना..
आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही
जबसे तुम फिसल गये
मेरे आस-पास से
काई पर पड़ते ही पैर की तरह
बेबस है
लाचार हो गई हैं जिन्दगी
किसी एक के ना मिलने के वजह से
नाहक ही
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
मंगलवार, 2 अप्रैल 2019
औरत ना होती तो
औरत ना होती तो
प्यार ना उपजा होता मर्द के अंदर
नदियाँ ना होती तो
सागर रेगिस्तान की तरह तपता रहता
ह्दय में पीड़ा का मंथन ना होता तो
कोई क्यों सृजता कविता !
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
सोमवार, 1 अप्रैल 2019
गेंहू की फ़सल पक गई
गेंहू की फ़सल पक गई
धूप भी गुस्से में रहने लगा है
नदियों का गला सूखता जा रहा है
बच्चे, बुढ्ढे अपना शर्ट, कुर्ता
उतार रखने लगें है
अलगनी पर
स्कूल की छुट्टियाँ कब होंगी..
यही बात
कक्षा दर कक्षा घुमती हुई
भटक जा रही है
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
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