शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

वह नदी

जो नदी बह के आगे निकल गई 
नही लौटेगी 
अब 

जो गुफ़्तगू मायने समझाता फिरता था
हरेक ख्यालात का 
किस्सा-कहानी सा लगता है अब वो 

तुम मिले 
फिरभी
अप्रत्याशित था वह मिलन 

दरअसल, क्षणभंगुर था वह मिलन।




- रवीन्द्र भारद्वाज




मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

तुम कुछ कहती तो

तुम आती तो
एक बात होती

मैं बुलाता तो 
दूसरी

तुम कुछ कहती तो 
एक बात के सौ मतलब निकलते

मैं कुछ कहू तो 
निर्रथक

- रवीन्द्र भारद्वाज


शनिवार, 28 सितंबर 2019

उसने कहा था

वह मुझसे अब बोलती नही

राज़ को राज़ रखती है 
भूले से भी, राज़ को खोलती नही 

उसने कहा था - 
हम तुमसे बेहद प्यार करते है 

करती तो थी 
लेकिन हकीकत में नही 
मुझे तो अब ऐसा ही लगता है 

- रवीन्द्र भारद्वाज


सोमवार, 16 सितंबर 2019

अफसोस कि

अफसोस कि तुम मुझे हारते देखते रहे 

सबसे पहले तुमने ही हराया था मुझे
अपनी दूरियों के जाल को मुझपर फेककर

और जमाना तो हार का मोहताज नही 
वो तो जीत का ही जश्न मनाता फिरता है

किसीको हारते देखना
और खुद हारना 
दो अलग बातें है 

अगले को देखकर गुस्सा आता है
और खुदपर तो बहुत गुस्सा।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 5 सितंबर 2019

विदा लेते वक्त

विदा लेते वक्त 
उसके आँखों मे आँसू थे 

पत्थर का ह्दय उसका 
शायद पिघल कर मोम हो गया था 

उससे मैं भीड़ में मिला था 
और भीड़ में ही उसे खोते देखा 

देखा - 
अपने प्यार का नामोनिशान तक मिट गया था 
और हवा हल्की हो गयी थी

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 28 अगस्त 2019

एक तेरे न होने से साथ मेरे

तुम मुझे नही भूले तो 
हम तुम्हे भी नही भूले 

भूलना 
कब्र पर मिट्टी डालने जैसा होता है 

तुम्हारी यादों से सुबह होती है मेरी 

और
उसी भीनी-भीनी खुश्बू में 
डूब जाती है शामें मेरी 

दिन के उजाले में 
दुनिया मायावी लगती है 
लेकिन रात के अंधरे में 
मुरझाया गुलाब
एक तेरे न होने से साथ मेरे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


सोमवार, 26 अगस्त 2019

तुम एक रूठी नदी हो

मुझपे जो बीती उससे तुमको क्या !

दरअसल, कतिपय सह्दयता भी नही तुम्हारे अंदर 

तुम एक रूठी नदी हो 

जो यह बतलाती फिरती है- मेरा किसीसे कोई सरोकार नही 

यहाँतक कि मुझसे भी नही 

जबकि तुमको छाँव देता ही रहता हूँ 
किनारों पर खड़े रहकर तुम्हारे
पेड़ों सा 

मेड़ो सा बिछकर बताता रहता हूँ
यह अपने हिस्से का है
वो गैर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...