शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

वह नदी

जो नदी बह के आगे निकल गई 
नही लौटेगी 
अब 

जो गुफ़्तगू मायने समझाता फिरता था
हरेक ख्यालात का 
किस्सा-कहानी सा लगता है अब वो 

तुम मिले 
फिरभी
अप्रत्याशित था वह मिलन 

दरअसल, क्षणभंगुर था वह मिलन।




- रवीन्द्र भारद्वाज




2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 11 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुंदर रचना।
    सच्चे प्यार का मिलन तो जिंदगीभर का भी क्षणभंगुर लगता है।
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉 ख़ुदा से आगे 

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