गुरुवार, 5 सितंबर 2019

विदा लेते वक्त

विदा लेते वक्त 
उसके आँखों मे आँसू थे 

पत्थर का ह्दय उसका 
शायद पिघल कर मोम हो गया था 

उससे मैं भीड़ में मिला था 
और भीड़ में ही उसे खोते देखा 

देखा - 
अपने प्यार का नामोनिशान तक मिट गया था 
और हवा हल्की हो गयी थी

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-09-2019) को "रिश्वत है ईमान" (चर्चा अंक- 3451) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत भावपूर्ण रचना रविन्द्र जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. यूँ प्यार मिटना आसान नहीं ... दिल में सुलगेगा समय समय पर ...

    जवाब देंहटाएं

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...