सोमवार, 26 अगस्त 2019

तुम एक रूठी नदी हो

मुझपे जो बीती उससे तुमको क्या !

दरअसल, कतिपय सह्दयता भी नही तुम्हारे अंदर 

तुम एक रूठी नदी हो 

जो यह बतलाती फिरती है- मेरा किसीसे कोई सरोकार नही 

यहाँतक कि मुझसे भी नही 

जबकि तुमको छाँव देता ही रहता हूँ 
किनारों पर खड़े रहकर तुम्हारे
पेड़ों सा 

मेड़ो सा बिछकर बताता रहता हूँ
यह अपने हिस्से का है
वो गैर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

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