दिल खोलकर हँसता हूँ
कि सब गम चिड़ियों के झुंड की तरह उड़ जाये
लेकिन एक-दो ऐसी भी चिड़िया है
जो जँगले पे
मेरे दिल के
घर बनाकर रहने लगी है
उन्हें उड़ाना भी नही बनता मुझसे
ना ही दाना खिलाना
सुबह-शाम वो इतना खुश होकर चहकती है कि
मेरी नींद, मेरा चैन दरकने लगता है
खण्डहर वाले मकान में आये झंझावात से गिरने ही वाली दीवार की तरह
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार