अहसास को जब बुनना शुरू किया
तब नही मालूम था
कि एकदिन यह प्यार का चादर हो जायेगा
जिसे ओढ़कर सारी उम्र काटनी होगी
और उसे
इसका अहसास तक नही होगा शायद
चादर
चाहे जितनी फटी-पुरानी होगी
अपनापन गाढ़ा होता जायेगा
उससे
ये न सोचा था
लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ
उस चादर को ओढ़ते-ओढ़ते
रोए बढ़ते गये
शरीर पर
अपनेपन का
और अब अगर उसे उतार भी दे तो भी
वो अहसास नही जायेगा
जिसे ओढ़कर
जिया
आधा से ज्यादा उम्र
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार