रविवार, 24 फ़रवरी 2019

मैं बिखरता ही रहा

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जीते जी
मुझे कितना कष्ट झेलना पड़ा
सिर्फ तुम्हारे वजह से

खाब
एहसास
याद
का मानदंड काम न आया
और मैं बिखरता ही रहा

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

वक्त की की शरारत हैं ये

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जिन्हें मुझसे मिलना था 
वो गैरों से मिल गये 

जिनसे हमें मिलना था 
वो कबका हमें भूल गयें 

वक्त-वक्त की बात हैं ये 
आखिर वक्त की की शरारत हैं ये 

मुझे उनके होठों पर 
मुस्कान बनके खिलना था 
मगर वो मुझे देखकर 
मुस्काना ही भूल गये 

मेरे हमदम !
मुझे जुरुरत नहीं अब किसीकी 
दोस्ती के हाथ नेताओं से कटवा लिये

रुको ! कुछ देर 'गुरुदेव' के यहाँ 
चाय ना सही, पानी जुरूर पिलायेंगे 

गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

वो करार नहीं

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इन वादियों और फिजाओं में 
वो करार नहीं 
जो मिलता था 
हमसे गले 
वर्षो पहले 

पंछी से 
बेगाने हो गये तुम 

नदी सी 
पवित्र हो गयी तुम 

मिट्टी सी 
सोंधी हो गयी तुम 

अबभी इक टिस सी उठती हैं 
जब कभी याद आता हैं 
कैसे भूल गये तुम मुझें 

याद ही हैं कि
तुम सूरज की किरणों सी गिरती हो 
मुझपर 
वरना 
साक्षात् देखे एक-दुसरे को 
अरसा हुआ 

मूर्छित होने लगता हैं ये जीवन 
जब कोई लंगोटिया यार जिक्र कर देता हैं 
अब्बे वो कैसी हैं 
तुम्हारे बगैर तो जीना ही नही चाहती थी एकपल 

मुझे याद हैं 
तकरीबन चार-पाँच बरस पहले 
उसे आयी थी याद मेरी 
तब कॉल करके पूछी थी 
कैसे हो !

बड़ा अटपटा सा लगा था 
कैसे हो – सुनकर 

जवाब हलक में अटक गया था 
और कॉल भी कट चुका था 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

यादें

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सदियाँ बीती
बतियाँ बीती
बीते जीवन के
सुख, चैन

बीते वक्त में
यादों के लम्हे
कागज की नाँव होती हैं
स्मृति के पानी पर
तैरती रहती हैं जो
हररोज़.

हररोज़ ही डूब जाती हैं
ये यादें
जानबुझकर
या जाने-अनजाने में ही
अवसाद की लहरों से ठोकर खा 
औंधे मुँह

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

एक तरफ़ा सफ़र

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एक तरफ़ा सफ़र मैंने तय किया 
प्यार में 

था भरोसा 
एकदिन प्यार हो जायेगां तुम्हें 
मेरे प्यार पर 
और हम साथ-साथ चलेंगें 

लेकिन नही 
हुआ 
मेरा सोचा 

कहते भी हैं लोग 
कि सोचा सच नहीं होता कभी 

मैंने सहस्रों कविताएँ रच डाली 
चित्र भी 

पर शायद इतना काफी न था 
मेरी सृजनशीलता 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

तुमसे मिलकर

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तुमसे मिलकर 
जानां 
जिन्दगी क्या हैं !

वैसे तो जिन्दगी धुप लगती थी 
ग्रीष्म की 

पर 
अब जानां 
तुमसे प्यार करके 
जिन्दगी 
जाड़े में खिली 
धूप हैं 

पर्वत के पीछे 
कोई रहता हैं 
वो चाँद हैं 
जाना 
तुमसे प्रणय-सम्बन्ध बनते-बनते 
वो मेरा एकलौता दोस्त बन गया हैं 

अब रात 
झींगुरों से नही गूंजती 
दिन 
भौरें सा भागमभाग में नही बीतता 

अब करीने से सुबह होती हैं 
और शाम दुल्हन सी सज-धज के आती हैं 
मेरे जीवन के दरख्त पे 

तुमसे मिलकर 
जाना 
प्यार क्या हैं 
ऐतबार क्या होता हैं 
और एहसास क्या हैं  

इन सबसे बड़ी चीज तो मैं बताना ही भूल गया 
यार तुम हो बेहद नायाब 
शुक्र हैं 
मुझे तुमसे प्यार हुआ.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

बड़ा कदम हम उठायेंगे..


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सादर नमन ....
मेरे भाइयों !

प्रभू तुम्हारी आत्मा को
शांति दे
मित्रो !

छुपकर हमला करना
गीदड़ो को आता हैं
हिन्दुस्तान तो शेर हैं

और शेर के बच्चो की कुर्बानी
जाया नहीं जायेगीं

द सर्जिकल स्ट्राइक
से
बड़ा कदम
(शोक मना लेने दो मेरे अजीज दुश्मनों)
हम उठायेंगे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...