तुमसे मिलकर
जानां
जिन्दगी क्या हैं !
वैसे तो जिन्दगी धुप लगती थी
ग्रीष्म की
पर
अब जानां
तुमसे प्यार करके
जिन्दगी
जाड़े में खिली
धूप हैं
पर्वत के पीछे
कोई रहता हैं
वो चाँद हैं
जाना
तुमसे प्रणय-सम्बन्ध बनते-बनते
वो मेरा एकलौता दोस्त बन गया हैं
अब रात
झींगुरों से नही गूंजती
दिन
भौरें सा भागमभाग में नही बीतता
अब करीने से सुबह होती हैं
और शाम दुल्हन सी सज-धज के आती हैं
मेरे जीवन के दरख्त पे
तुमसे मिलकर
जाना
प्यार क्या हैं
ऐतबार क्या होता हैं
और एहसास क्या हैं
इन सबसे बड़ी चीज तो मैं बताना ही भूल गया
यार तुम हो बेहद नायाब
शुक्र हैं
मुझे तुमसे प्यार हुआ.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार......आदरणीया
हटाएंबहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार.......आदरणीय
हटाएंवाह शानदार रचना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार......आदरणीया
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