रविवार, 24 फ़रवरी 2019

मैं बिखरता ही रहा

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जीते जी
मुझे कितना कष्ट झेलना पड़ा
सिर्फ तुम्हारे वजह से

खाब
एहसास
याद
का मानदंड काम न आया
और मैं बिखरता ही रहा

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

4 टिप्‍पणियां:

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...