शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

वक्त की की शरारत हैं ये

Image result for मुझे उनके होठों पर मुस्कान बनके खिलना था
जिन्हें मुझसे मिलना था 
वो गैरों से मिल गये 

जिनसे हमें मिलना था 
वो कबका हमें भूल गयें 

वक्त-वक्त की बात हैं ये 
आखिर वक्त की की शरारत हैं ये 

मुझे उनके होठों पर 
मुस्कान बनके खिलना था 
मगर वो मुझे देखकर 
मुस्काना ही भूल गये 

मेरे हमदम !
मुझे जुरुरत नहीं अब किसीकी 
दोस्ती के हाथ नेताओं से कटवा लिये

रुको ! कुछ देर 'गुरुदेव' के यहाँ 
चाय ना सही, पानी जुरूर पिलायेंगे 

गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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  2. मुझे उनके होठों पर
    मुस्कान बनके खिलना था
    मगर वो मुझे देखकर
    मुस्काना ही भूल गये
    बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं

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