तेरे जज्बातों के साये में काटनी थी
ताउम्र
पर एक उम्र के बाद
तेरे ख्यालात बदल गए
मुझे लेकर
मुझे लेकर
जिस तीव्र गति से चली थी तुम
लगता था आसमान के पार जाकर ही रुकेंगे।
कहते है
राख के नीचे शोले दबे होते है
मगर वो दिखते नही
और ना ही वो गर्मी प्रदान करते है
कुछ ऐसे ही हम भी रुके है तुम्हारे पास
ठिठुरते हुए।
~ रवीन्द्र भारद्वाज