प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...

-
बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं...
-
सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
-
तुम्हें भूला सकना मेरे वश में नही नही है मौत भी मुकम्मल अभी रस्ते घर गलियाँ गुजरती है तुझमें से ही मुझमे ...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 16, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस रचना को "पाँच लिंको का आनंद" में साझा करने के लिए आभार आपका आदरणीया सादर 🙏
हटाएंवाह ... ऐसा एहसास जो प्रेम के एहसास कोकई गुना कर दे ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब..सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम में ऐसा होता है अक्सर....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।..
वाह !!!
वाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंऐ नादान आशिक़ ! तू अब तू नहीं रहा, तेरा अपना वुजूद भी नहीं रहा. अब तू उसमें समा गया है.
जवाब देंहटाएं