सोमवार, 26 अगस्त 2019

तुम एक रूठी नदी हो

मुझपे जो बीती उससे तुमको क्या !

दरअसल, कतिपय सह्दयता भी नही तुम्हारे अंदर 

तुम एक रूठी नदी हो 

जो यह बतलाती फिरती है- मेरा किसीसे कोई सरोकार नही 

यहाँतक कि मुझसे भी नही 

जबकि तुमको छाँव देता ही रहता हूँ 
किनारों पर खड़े रहकर तुम्हारे
पेड़ों सा 

मेड़ो सा बिछकर बताता रहता हूँ
यह अपने हिस्से का है
वो गैर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कन्हैया ! तुम भूले राधा को !

कन्हैया ! तुम भूले राधा को !
लेकिन 
राधा 
तुम्हे अबभी याद करती है 

उसने पीर समझी 
अपनी 
तुम्हरी
सिर्फ इसलिए तुम्हे माफ करती है

तुम माफी के लायक तो नही 
लेकिन सृष्टि-रचिया के नाते 
तुमपर कोई इल्जाम नही !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

बुधवार, 21 अगस्त 2019

दो राहें पर मिले हम।

दो राहें पर मिले हम।

हम अब कुछ कह नही सकते 
लेकिन बहुत कुछ सह सकते है 
सह भी चुके है 

न आगे जाने की जिद है 
न पीछे मुड़ जाने की ख्वाहिश

फैसले लेने में असमर्थ मालूम पड़ते है हम 
अब न जाने क्यों !

एक रास्ता घर को जाता है 
दूसरा मैखाने के तरफ 
लेकिन आज घर जाने से पहले 
मैखाने के तरफ बढ़ते चले जा रहे है कदम..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


मंगलवार, 20 अगस्त 2019

तू मेरा नही तो क्या

तू मेरा नही तो क्या 
मेरा हुआ करता था तू भी कभी 

कभी मेरे बाजुओं में दम तोड़ने की आरजू थी तुम्हारी

नदी सरीखी बहने का इरादा था तुम्हारा 
मेरे अंदर

कभी न गुजरनेवाले पूर्णरूप से मेघ की तरह 
तुम चलते रहना चाहती थी हमेशा
मेरे ऊपर से 

समुन्दर के किनारे लेटकर 
खिली धूप में 
गॉगल्स में से देखने की एक-दूसरे की इच्छा तो 
अधूरी रह गयी।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

त्रिकोणीय प्रेम

आग इस दिल मे लगी है तो उस दिल मे क्यों नही !

प्यार मुझे है तो तुम्हे क्यों नही !


त्रिकोणीय प्रेम 
अवसादग्रस्त कर देता है 

हम जैसे मिलते है छुपते-छुपाते 
एक-दूसरे-तीसरे से 
सुकून को भरने नही देता 
हमारे अंदर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



बुधवार, 14 अगस्त 2019

धरती

वो 
खुदही तपेगी 
भीजेंगी
ठिठुरेगी 
लेकिन किसी से कुछ कहेगी नही 
ओरहन जैसे 

वो 
सहनशीलता की पर्याय है

वो 
हमारे जीवन की आधार है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

जबसे तुम्हे मिल गया कोई

तूने रास्ते बदले 
कसमे तोड़े 
वादों को ताक पर रखा मेरे
जबसे तुम्हे मिल गया कोई

कोई मुझसे ज्यादा तुम्हे चाहने लगा 
यकीन नही होता 

याद करो 
मैने तुम्हे जीना सिखाया था 
हजार नाउम्मीदी में 

हँसना सिखाया
तुम्हारे बेहिसाब हालातो के गरीबी में 

मै हर मोड़ पर जिंदगी के तुम्हारे
कवच जैसे खड़ा रहा
दुनिया के जहरीले तीरो और बरछी से बचाने के लिए
तुम्हे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...