बुधवार, 21 अगस्त 2019

दो राहें पर मिले हम।

दो राहें पर मिले हम।

हम अब कुछ कह नही सकते 
लेकिन बहुत कुछ सह सकते है 
सह भी चुके है 

न आगे जाने की जिद है 
न पीछे मुड़ जाने की ख्वाहिश

फैसले लेने में असमर्थ मालूम पड़ते है हम 
अब न जाने क्यों !

एक रास्ता घर को जाता है 
दूसरा मैखाने के तरफ 
लेकिन आज घर जाने से पहले 
मैखाने के तरफ बढ़ते चले जा रहे है कदम..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


2 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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