दो राहें पर मिले हम।
हम अब कुछ कह नही सकते
लेकिन बहुत कुछ सह सकते है
सह भी चुके है
न आगे जाने की जिद है
न पीछे मुड़ जाने की ख्वाहिश
फैसले लेने में असमर्थ मालूम पड़ते है हम
अब न जाने क्यों !
एक रास्ता घर को जाता है
दूसरा मैखाने के तरफ
लेकिन आज घर जाने से पहले
मैखाने के तरफ बढ़ते चले जा रहे है कदम..
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
बहुत सुंदर सृजन।
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