गुरुवार, 30 मई 2019

लौटे नही बबुआ के पापा

नदी खामोशी की 
बहती जाती हैं
उसके भीतर ही भीतर 

वो कुछ कहती नही 
किसीसे
आजकल

आजकल 
पैसों का बड़ा मारामारी है 

बड़ी किल्लत चल रही है
उसके घर 

चार दिन हो गये लौटे नही बबुआ के पापा
कही कूछ हो वो न गया हो उनको 

दरअसल बिहार मे वो शराब लेकर गये है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



बुधवार, 29 मई 2019

मिलने से कब बाज आनेवाले है हम

ढेर सारी बातें थी 
जो तुमसे पूछनी अभी बाकी थी 

ना तुमने बुलाया
ना मैं आया 
तुम्हारे घर 

ऐसा नही है कि 
गलती मेरी या तेरी है

दरअसल किस्मत की रेखाएं हमारी आड़ी-टेड़ी है

नही तो मिलने से कब बाज आनेवाले है हम।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 28 मई 2019

परिंदे और आदमी

परिंदे 
उड़ते-उड़ते 
किसी ऐसे जगह पर जा पहुचेंगे
जहाँ थोड़ा-बहुत तो जरूर सुकून हो 

लेकिन
हम 
एकांत की खोज में 
भीड़ में शामिल हो जायेंगे

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


रविवार, 26 मई 2019

फिरभी

किसी उम्मीद की उंगली पकड़कर चलता हूँ 
तेरे साथ-साथ 

जबकि साथ मुकम्मल भी नही है
फिरभी 

फिरभी 
तेरी हरेक बेपरवाही का परवाह करता हूँ 

यार ! तू तो भूल गया होगा मुझसे पहले
मेरे प्यार को 
लेकिन आजभी मैं तुम्हें प्यार से ही, प्यार करता हूँ।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

गुरुवार, 23 मई 2019

पापा ! आज घर जल्दी आना !

पापा ! आज घर जल्दी आना 

तुमने कहा था न हम घूमने चलेंगे

तुमने ये भी कहा था हम आइसक्रीम खायेंगे
और ख़रीदोंगो वो रेलगाड़ी 
जो गोल-गोल घूमती है
अरे वही जो पेंसिल सेल से चलती है 

पापा ! आज घर जल्दी आना 

मैं क्या पहन के चलूंगा तुमने पूछा था न 
मम्मी ने धो दिया है वो जीन्स टी शर्ट 
और तुम्हारे आने से पहले ही वो सुख जायेगा

पापा ! प्लीज प्लीज आज घर जल्दी आना।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 21 मई 2019

बिन बाबा के

बिन बाबा के 
बेटी 
ना ब्याही जाये 

बाबा के शिवाय 
कोई बेटी को विदा ना कर पाये 

बिन बाबा से गले मिले
बेटी से चौखट पार ना हो पाये 

बाबा की कांपती हथेलियां 
आशीष देंने के लिए उसके सर पर रुके

रुकते कदम बेटी का 
फिरसे आगे बढ़ते जाये 

बाबा का आशीर्वाद 
जनम-जनम तक फले-फुलाए
बेटी के घर

बिन बाबा के
बेटी
ब्याही ना जाये।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

तुमको भूल ना पायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे

भूलकर तुम्हें 
कहाँ जायेंगे

मेरी हरेक नादानी पर हँसना जी खोलकर
मेरी हरेक बेपरवाही का परवाह करना चुप रहकर
नही भुला पायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे

क्योंकि किस्मत को आजमाने किस-किस दर जायेंगे
जहाँ भी जायेंगे मुझे ही पायेंगे हुजूर 
- मेरी बेरुखी सी बातों को सुनकर कहती थी तुम 
इसलिए
हम कोई और दरवाजा नही खटखटायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे 

और हाँ, भूलकर तुम्हें
कहाँ जायेंगे।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...