गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

यादें

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सदियाँ बीती
बतियाँ बीती
बीते जीवन के
सुख, चैन

बीते वक्त में
यादों के लम्हे
कागज की नाँव होती हैं
स्मृति के पानी पर
तैरती रहती हैं जो
हररोज़.

हररोज़ ही डूब जाती हैं
ये यादें
जानबुझकर
या जाने-अनजाने में ही
अवसाद की लहरों से ठोकर खा 
औंधे मुँह

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

एक तरफ़ा सफ़र

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एक तरफ़ा सफ़र मैंने तय किया 
प्यार में 

था भरोसा 
एकदिन प्यार हो जायेगां तुम्हें 
मेरे प्यार पर 
और हम साथ-साथ चलेंगें 

लेकिन नही 
हुआ 
मेरा सोचा 

कहते भी हैं लोग 
कि सोचा सच नहीं होता कभी 

मैंने सहस्रों कविताएँ रच डाली 
चित्र भी 

पर शायद इतना काफी न था 
मेरी सृजनशीलता 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

तुमसे मिलकर

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तुमसे मिलकर 
जानां 
जिन्दगी क्या हैं !

वैसे तो जिन्दगी धुप लगती थी 
ग्रीष्म की 

पर 
अब जानां 
तुमसे प्यार करके 
जिन्दगी 
जाड़े में खिली 
धूप हैं 

पर्वत के पीछे 
कोई रहता हैं 
वो चाँद हैं 
जाना 
तुमसे प्रणय-सम्बन्ध बनते-बनते 
वो मेरा एकलौता दोस्त बन गया हैं 

अब रात 
झींगुरों से नही गूंजती 
दिन 
भौरें सा भागमभाग में नही बीतता 

अब करीने से सुबह होती हैं 
और शाम दुल्हन सी सज-धज के आती हैं 
मेरे जीवन के दरख्त पे 

तुमसे मिलकर 
जाना 
प्यार क्या हैं 
ऐतबार क्या होता हैं 
और एहसास क्या हैं  

इन सबसे बड़ी चीज तो मैं बताना ही भूल गया 
यार तुम हो बेहद नायाब 
शुक्र हैं 
मुझे तुमसे प्यार हुआ.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

बड़ा कदम हम उठायेंगे..


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सादर नमन ....
मेरे भाइयों !

प्रभू तुम्हारी आत्मा को
शांति दे
मित्रो !

छुपकर हमला करना
गीदड़ो को आता हैं
हिन्दुस्तान तो शेर हैं

और शेर के बच्चो की कुर्बानी
जाया नहीं जायेगीं

द सर्जिकल स्ट्राइक
से
बड़ा कदम
(शोक मना लेने दो मेरे अजीज दुश्मनों)
हम उठायेंगे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

वो गुम हो गयी हैं

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वो ऐसे गुम हो गयी हैं 
जैसे हवा 

हवा के निशां नही होते 
उसके भी नही हैं 

कितने पतझर 
कितने बसंत 
देखे 
अकेले 
उसे इसकी खबर ही नहीं 

कहते हैं 
पृथ्वी गोल हैं 
जहाँ से चलोगे 
वही आकर ठहरोगे 
लेकिन 
मेरे जीवन में 
यह सच 
होता हुआ नही लगा 
कभी मुझे 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

पलाश को मैंने देखा नहीं अभीतक

पलाश को 
मैंने देखा नहीं अभीतक 
साक्षात् 

या हो सकता हैं 
देखा हूँगा 
पर ठीक से 
याद नहीं 
कब 

सूना हैं 
बसंत यही से कूदता हैं 
धरती पर 

पलाश का पुष्प 
लाल होता हैं 
खून से भी ज्यादा लाल 
पढ़ा हैं 
अनेकानेक कविताएँ 
पलाश को स्पर्श करती हुई 

पलाश 
कविजन को 
भाता हैं बहुत 
तभी तो देखते ही 
पलाश पर 
रच डालते हैं कविताएँ 
कि सदियों तक 
खिला रहे 
ठीक ऐसे ही 
जैसे अभी खिला होता हैं 

सूना हैं 
वर्ष में सिर्फ एकबार ही 
खिलता है पुष्प इसपर 
और जल्द ही 
विलुप्त भी हो जातें हैं 

जिसदिन 
मेरे भाग खुलेंगे 
देख ही लूंगा 
भाई पलाश तुमको

- रवीन्द्र भारद्वाज



पलाश को हरकोई देख रहा हैं

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बसंत को 
हरकोई देख रहा हैं 

बसंत हैं ही ऐसा 
मन को मोह लेनेवाला 


पलाश को 
हरकोई देख रहा हैं 

पलाश हैं ही ऐसा
आत्मा को लुभा देनेवाला


आम का बौर 
हरकोई देख रहा हैं 

बौर हैं ही ऐसा 
पंछी क्या, मानव भी गुनगुनाने लगता हैं 
फगुआ 


सरसों को 
हरकोई देख रहा हैं 

सरसों का जोबन 
हैं ही गदराया 


मुझे कोई नही देख रहा 
जबकि मैंने ही रंग भरे 
आकार ढले 
इनके 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...