प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
गुरुवार, 16 दिसंबर 2021
वृद्ध आदमी और नदी
ऐ जिंदगी !
कभी शिकायत थी तुमसे
ऐ जिंदगी !
अब नही है...
जीने का जुनून था
कुछ कर गुजरना खून में था
तकलीफ भी कम तकलीफ देती थी
तब।
अब
अपने पराये को
ताक पर रखकर जीते हैं
जबसे
डसा हैं
तुमनें
अपना भी बनाकर
और पराया भी बनाकर...
कभी प्रणय भी था
ऐ जिंदगी !
तुमसे।
- रवीन्द्र भारद्वाज
शनिवार, 23 अक्टूबर 2021
तुम चलोगी क्या !
मुझे बादलों के उस पार जाना है
तुम चलोगी क्या !
साथ मेरे
मुझे वहाँ आशियाँ बनाना है
हाथ बटाओगी क्या !
मेरा वहाँ..
अगर चलती तो
साथ मिलकर
बाग लगाते, साग-सब्जियां भी..
एक दूसरे को देखते हुए
पौधों को पानी देते
और ख़ुदको
बहुत ज्यादा सुकून और शांति..
और अपने प्यार को गहरा नीला आसमान देते
स्वछंदता का हाथ तुम्हारे साथ थामकर।
- रवीन्द्र भारद्वाज
सोमवार, 20 सितंबर 2021
मैं हमेशा तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ
शुक्रवार, 10 सितंबर 2021
सुबह और कली
सुबह
मेरी खिड़की की पल्लों पर
ठहरी हैं
कि कब खोलूंगा मैं खिड़की
कली
बाँहें अपनी खोल, खड़ी है
कि कब समाउंगा मैं
उसमें।
_रवीन्द्र भारद्वाज_
रविवार, 29 अगस्त 2021
तुम मेरे हो...
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
एक समझौता
सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...

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बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं...
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सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
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तुम्हें भूला सकना मेरे वश में नही नही है मौत भी मुकम्मल अभी रस्ते घर गलियाँ गुजरती है तुझमें से ही मुझमे ...