रविवार, 2 जून 2019

जिस तन को लगे वही जाने

 
पलको पे सजाके रखा था 
तुम्हें 
क्या तुम्हे इसका एहसास नही 

तुम जिसे दिल से दबाये रखी हो 
उसका एहसास तो होगा न तुम्हे
बहोत 

खैर छोड़ो जिस तन को लगे वही जाने 
क्या होता है प्यार, जज्बात, एहसास से हासिल दर्द

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


शनिवार, 1 जून 2019

कवि की क्या जिंदगी !

कवि की क्या जिंदगी !

बस यू समझ लीजिए
जैसे रवि जलता है अपने से लिपटी आग में 

ठीक उसी तरह कवि जलता है 

लेकिन गम की परायी आग में

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


गुरुवार, 30 मई 2019

लौटे नही बबुआ के पापा

नदी खामोशी की 
बहती जाती हैं
उसके भीतर ही भीतर 

वो कुछ कहती नही 
किसीसे
आजकल

आजकल 
पैसों का बड़ा मारामारी है 

बड़ी किल्लत चल रही है
उसके घर 

चार दिन हो गये लौटे नही बबुआ के पापा
कही कूछ हो वो न गया हो उनको 

दरअसल बिहार मे वो शराब लेकर गये है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



बुधवार, 29 मई 2019

मिलने से कब बाज आनेवाले है हम

ढेर सारी बातें थी 
जो तुमसे पूछनी अभी बाकी थी 

ना तुमने बुलाया
ना मैं आया 
तुम्हारे घर 

ऐसा नही है कि 
गलती मेरी या तेरी है

दरअसल किस्मत की रेखाएं हमारी आड़ी-टेड़ी है

नही तो मिलने से कब बाज आनेवाले है हम।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 28 मई 2019

परिंदे और आदमी

परिंदे 
उड़ते-उड़ते 
किसी ऐसे जगह पर जा पहुचेंगे
जहाँ थोड़ा-बहुत तो जरूर सुकून हो 

लेकिन
हम 
एकांत की खोज में 
भीड़ में शामिल हो जायेंगे

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


रविवार, 26 मई 2019

फिरभी

किसी उम्मीद की उंगली पकड़कर चलता हूँ 
तेरे साथ-साथ 

जबकि साथ मुकम्मल भी नही है
फिरभी 

फिरभी 
तेरी हरेक बेपरवाही का परवाह करता हूँ 

यार ! तू तो भूल गया होगा मुझसे पहले
मेरे प्यार को 
लेकिन आजभी मैं तुम्हें प्यार से ही, प्यार करता हूँ।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

गुरुवार, 23 मई 2019

पापा ! आज घर जल्दी आना !

पापा ! आज घर जल्दी आना 

तुमने कहा था न हम घूमने चलेंगे

तुमने ये भी कहा था हम आइसक्रीम खायेंगे
और ख़रीदोंगो वो रेलगाड़ी 
जो गोल-गोल घूमती है
अरे वही जो पेंसिल सेल से चलती है 

पापा ! आज घर जल्दी आना 

मैं क्या पहन के चलूंगा तुमने पूछा था न 
मम्मी ने धो दिया है वो जीन्स टी शर्ट 
और तुम्हारे आने से पहले ही वो सुख जायेगा

पापा ! प्लीज प्लीज आज घर जल्दी आना।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...