शुक्रवार, 10 मई 2019

अगर तुम बुलायी ना होती

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हम रोक लेते खुदको 
अगर तुम बुलायी ना होती 

बात जेहन में दबाके रख लेता 
अगर मुझे देख-देखकर मुस्कुरायी ना होती 

छुट गया जो कोर आंचल का 
काश ! उसके नीचे पलभर को सही सुलायी होती 

नदी आड़ी-तिरछी बहती चली गयी 
काश ! एकबार प्यास बुझा के जाती 

हम शराब के नशे में नही होते 
अगर बेवफ़ाई का पाठ तुमने ना पढ़ाई होती 

गज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

बुधवार, 8 मई 2019

तेरे दर से चले थे

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तेरे दर से चले थे 
ये सोचकर कि
तू मुझे रोक लेगी 

बुलाया भी तूने था 
और भगाया भी तूने था 

प्यार तुमसे होने के बाद 
मैं तेरा कैदी हो गया था 

इसलिए उम्रकैद की सजा मंजूर थी 
तेरे साथ जीने-मरने की 
हर हालत में 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मंगलवार, 7 मई 2019

क्या कहने

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खुली हवा में साँस लेना 
बरसात में तेरे साथ होना 
क्या कहने 

गुलाबी सूरज का पहाड़ से गेंद सा लुढ़कना
सागर पर चाँदनी का चमचमाना
किसी स्त्री के महंगे साड़ी के आंचल सा 
क्या कहने 

क्या कहने 
उसरात की जिसकी सुबह ही नही हुई 
जब मैं तुम्हारे आग़ोश में लेटा तुम्हें देख-देख 
तुम्हारी तारीफे करता ना थका था 
और तुमने भी खूब वाह-वाही लूटी थी ना 
उसरात

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 5 मई 2019

नन्ही चिड़िया खिड़की पर

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नन्ही चिड़िया खिड़की की सरिया पर बैठ 
अंदर झाँक रही है कि 
क्या हो रहा है यहाँ 

मशीनों के शोर से उसके कान के पर्दे फट रहे है 

यहाँ की जहरीली गैस उसकी नजरों को धूमिल कर रही है 

वह शायद दाने के तलाश में यहाँ आ पहुंची है 

और उड़ भी गई 
मेरा ध्यान उसपर से हटते 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 3 मई 2019

चाहकर भी तुम नही लौट सकती

चाहकर भी तुम नही लौट सकती 

चाहकर भी मैं तुम्हें नही बुला सकता 

मजबूरियों के पर निकल आये है 
चील के तरह मडराते रहते है 
आसमान में 
जिन्दगी के 

राते जलती रहती है 
तुलसी के नीचे रखे साँझ के दिया की तरह 
कि तुम गर लौटो कभी तो 
घर पहचान लो मेरा 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 1 मई 2019

मैं ही मैं नही

तुम्हें भूला सकना 
मेरे वश में नही 

नही है 
मौत भी 
मुकम्मल अभी 

रस्ते घर गलियाँ 
गुजरती है 
तुझमें से ही 
मुझमे

लगता है 
बस मैं ही मैं नही 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

हमे मुद्दत हुआ एक-दुसरे को देखे

माना 
हमे मुद्दत हुआ 
एक-दुसरे को देखे 

हमारी शक्लें बदली होंगी 
हमारा हावभाव और व्यवहार 
बहुत तक बदल ही गया है 

क्या मिलने आओगी 
सर पर ओढ़नी डाल
जिन्दगी के चिलचिलाती धुप में 
कभी 

नही मिलने ना सही 
बस हाल-चाल पूछने 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...