शुक्रवार, 3 मई 2019

चाहकर भी तुम नही लौट सकती

चाहकर भी तुम नही लौट सकती 

चाहकर भी मैं तुम्हें नही बुला सकता 

मजबूरियों के पर निकल आये है 
चील के तरह मडराते रहते है 
आसमान में 
जिन्दगी के 

राते जलती रहती है 
तुलसी के नीचे रखे साँझ के दिया की तरह 
कि तुम गर लौटो कभी तो 
घर पहचान लो मेरा 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 1 मई 2019

मैं ही मैं नही

तुम्हें भूला सकना 
मेरे वश में नही 

नही है 
मौत भी 
मुकम्मल अभी 

रस्ते घर गलियाँ 
गुजरती है 
तुझमें से ही 
मुझमे

लगता है 
बस मैं ही मैं नही 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

हमे मुद्दत हुआ एक-दुसरे को देखे

माना 
हमे मुद्दत हुआ 
एक-दुसरे को देखे 

हमारी शक्लें बदली होंगी 
हमारा हावभाव और व्यवहार 
बहुत तक बदल ही गया है 

क्या मिलने आओगी 
सर पर ओढ़नी डाल
जिन्दगी के चिलचिलाती धुप में 
कभी 

नही मिलने ना सही 
बस हाल-चाल पूछने 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

वो प्यार के शुरुआती दिन थे

कभी बादलो पर पैर रखकर घूम आये थे 
पूरा आकाश 
दरअसल, वो प्यार के शुरुआती दिन थे 

कभी कड़वी यादें 
मीठी बेर सी लगी 
वो सबकुछ भूला के बस प्यार में गुम हो जाने के दिन थे 

जिगर पर चोट लगे थे तमाम 
बस दगा अपनों ने नही किया था 
यु कहे तो 
वही सबसे खूबसूरत शक्ल थी जिन्दगी की 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 28 अप्रैल 2019

दर्द भरा सफ़र

वो मेरे बिन अकेली होगी 

मैं उसके बिन अकेला हो गया हूँ न 

हमे चाँद पर जाना था मगर 
इससे पहले कि हम आसमान में चढ़ते 
हमारे नीचे की जमीन 
हमारे अपनों ने खींच ली 

बड़ा दर्द भरा सफ़र
रहा 
बिछड़ने के बाद का 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बाबा तुम भूल गये क्या !

बाबा तुम भूल गये क्या !
बिटियाँ का देश 

नही भूले होंगे सुबह-शाम पान चबाना 
मूछें ऐठकर अम्मा-भैया पर रौब जमाना 

घर से निकलने से पहले नही भूलते होंगे 
भगवान को फूल चढ़ाना 

फूल भी अड़हुल के तोड़ लाते होंगे 
मुँह अँधेरे 
तड़के में टहलने से लौटते 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

एक तुम्ही थी

तुमसे दूर होने के बाद 
सदा 
ये एहसास रहा 
एक तुम्ही थी जो मुझे अच्छे से समझती थी 

जानती थी हर वो बातें 
जो हरकिसीसे छिपाए रखा था मैंने 

फिर कब मिलना नसीब होगा 
यह सवाल 
मेरे दिलोदिमाग से टकराता रहता है 
दो दीवारों के बीच फेंके गये गेंद की तरह 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...