गुरुवार, 14 मार्च 2019

खाली समय में

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नितांत खाली समय में 
मुझे उसकी याद आयी 
जो भूल चुकी हैं ये कि
उसे भी किसीसे प्यार था 
इतना कि
सम्हालें नही सम्हलता था 
उसका नादान दिल !

वो कालेज के दिन थे 
माघ-पूस महीने की रातों में भी 
रतजगे जश्न की तरह होती थी 

खैर, तुम्हे मुझे भूले 
बरसों हुए 
लेकिन मुझे तुम्हे भुलाना आया ही नही आजतक 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

बुधवार, 13 मार्च 2019

बेटी कल विदा होंगी

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बेटी 
कल विदा होगी 

आज जश्न का माहौल हैं 
और ठुमक-ठुमककर नाँच रहा हैं 
बंदरवाला नाँच
हरकोई 

हर कोई 
इस बात से अनभिज्ञ हैं 
कल विदा होंगी 
बेटी 
ऐसे शहर को 
जिसे पर्यटक के तरह भी नही घुमा हैं 
उसने 

कि कैसे बंद करके रख ली हैं आँसू 
अपने पर्श में 
कोई खंगालना भी नही चाहता 
कि उसमे कितना दर्द हैं 
बेगाने शहर को रुखसत होने से पहले 
सिसकते हुए 

मैंने देखा था उसे 
खिड़की से बाहर तांकते हुए 
शून्य में 

आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी 
रिश्ते-नाते 
घर-परिवार 
यहाँतक कि जिन्दगी भी 

बेटी 
कल विदा होंगी
और हँसनेवाले भी रोयेंगे 
बेवजह 

जबकि वजह तो 
नई बहुरिया को तलाशनी होंगी.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मंगलवार, 12 मार्च 2019

ओ परी !

ओ परी !
बड़ी प्यारी लग रही हो आज !

आज फिजाओं में मस्ती हैं 

और सागर पर फेनिल लहरे 

मेरे हाथ में काश ! तुम्हारा हाथ होता !
दौड़ते-दौड़ते लगा देते डूबकी
इश्क़ के खारे पानी में 

और धूप में लेटकर 
कविता गुलजार की 
और अख्तर साहब की 
सुनाता 
तुम्हें 
यह एहसास तुमको हो जाता 
कही न कही 
मैं भी शायर बन चुका हूँ 
तुम्हारे इश्क़ में पड़कर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


सोमवार, 11 मार्च 2019

ये जग बैरी रे

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मेरा तेरा 
ये जग बैरी रे 

ये जग 
वही काला जहरीला साँप
जिसे कितना भी दूध पिला दो 
डसेगा 
एकदिन 
जरुर 

चलो 
हवाओ संग उड़ चले 
क्षितिज के उस पार 

सूना हैं 
वहाँ इस जहां के तरह मतलबपरस्ती नही 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 10 मार्च 2019

कब लौटोंगी

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तन की आग बूझें ना बूझें सही 
पर मन की आग बुझा दो 

कुछ इस तरह 
मुझें अपने सीने से लगा 
पलभर को सही सुला दो 

मैं बरसों से जाग रहा हूँ 
बेकरारी का धूल फांक रहा हूँ 

किसीरोज चैन से नही सोया 
नींद से जगा देते हैं 
बूरे सपने 

तेरे लौटने का रास्ता 
सदियों से ताक़ रहा हूँ 
कब लौटोंगी
क्या कभी नही !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शनिवार, 9 मार्च 2019

गरीबी बहुत बुरी चीज हैं..

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भठ्ठा के मजदूरों को देखकर 
वह बोली - 
गरीबी बहुत बुरी चीज हैं..

..भगवान जिसको देता हैं 
खूब देता हैं 
जिसको नही देता हैं 
कुछ नही देता हैं 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

प्रिये !

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प्रिये !
तुम्हे देखने को 
बहुत जी करता हैं 

तुम मीलों दूर क्यूँ चली गई हो 
क्या पास नही रह सकते हम !

वक्त के रवानी में 
बह गया 
वो सबकुछ 
जो बहुत प्यारा लगने लगा था हमें 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...