गुरुवार, 7 मार्च 2019

फ़गुआ में इस साल

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उमंग के बुलबुलें उठ रहे हैं 
तन-मन में 

तन-मन 
रंगीन हुआ हैं 
बसंती रंगों को 
जबसे फेका हैं 
प्रकृति ने 
हमारे ऊपर 

चलो फ़गुआ में इस साल 
तुम्हारे घर के तरफ आते हैं 
देखकर 
दूर से 
एक-दुसरे को 
मन से मन को 
प्रणय रंग लगायेंगे 

पकवान जैसे 
गालो पर खिलेंगी मुस्कान 
अगर हम एक-दुसरे को दिख जाते हैं 

चलो अबकी साल 
असर राग का दिल में समेटकर 
यादों के टूटे आशियाँ को 
दुरुस्त करने में जुट जाये

हमने एक-दुसरे को सदियों तक चाहा, सराहा हैं 
आखिर 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


बुधवार, 6 मार्च 2019

जितनी बार देखू तुझे कम हैं

जितनी बार देखू 
तुझे 
कम हैं 

कम हैं
दिल को सुकून दिलवा पाना 

आदतन 
हुआ हैं ये 
कि मैं तुझसे प्रेम करने लगा हूँ 

तुमपर 
इस कदर 
मरने लगा हूँ 
कि हर समय, हर बखत
तुम्हें सिर्फ तुम्हें
देखने को 
जी चाहता हैं 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 मार्च 2019

रुके थे सरे राह

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रुके थे सरे राह 
चलते-चलते 
तुम्हारा मेरे पीछे होने का भरम पाले 

आखिर तक भरम बना रहा 
आखिर 
कठोर चट्टान की तरह मेरा विश्वास था तुमपर 

अब 
उमर बीत गयी 
मंजिल निकल गयी 
हाथ से 

और तुम भी गुजर गये हो 
मेरे बहुत पास से 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 4 मार्च 2019

बगैर तुम्हारे

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ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

बगैर तुम्हारे 
हवा में शोख़ी नही 
मदिरा मदहोश करती नही 

चुभती हैं बातें
बातें जो दिल से निकलती नहीं 

ये फलक, ये जमीं
कुछ नहीं 
कुछ नहीं 
बगैर तुम्हारे 

गीत - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

रविवार, 3 मार्च 2019

तेरे बिना

मेरे बिना 
तुम तड़पती होंगी न 
बिन पानी के मछली की तरह 

मेरे बिना 
भटकती होंगी न तुम 
कस्तूरी को ढूढ़ते
हिरन की तरह 

तेरे बिना 
पेड़ से गिरा पत्ता हो गया हूँ 
समय की हवा चाहे जिस ओर ले जायें

तेरे बिना 
बिन मांझी के नाँव हो गयी हैं जिन्दगी 
चाहे जिधर पौरती जायें

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 2 मार्च 2019

प्रणय मेरा अभिशाप बना

प्रणय मेरा अभिशाप बना 

ना जी ही पाता हूँ 
ना मर ही पाता हूँ 
ठीक से 

लाख कोशिशों के बावजूद 
मैं इससे मुक्त भी नही हो पाया हूँ 

गोधूली बेला में 
वह पायल छनकाती 
रातरानी की ख़ुशबू उड़ाती
आ ही जाती हैं 
मेरे कमरे में 

उसकी शीतल स्पर्श के बावजूद 
आग धधकती रहती हैं 
तन-मन में 

खाबो-ख्यालो से ढका मेरा जीवन 
बस उसकी ही गोद में अंतिम सांस लेना चाहता हैं 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

उन्हें देखकर

उन्हें देखकर यूं लगा 
मुद्दत बाद करार मिल गया 

वादी में 
भुला-बिसरा नगमा मोहब्बत का गूंज गया 

मुझे याद हैं 
कबके मिले कबके बिछड़े हैं हम 

उनसे मिलते 
उम्र तमाम मिल गया 

रेखाचित्र व गजल - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...