उमंग के बुलबुलें उठ रहे हैं
तन-मन में
तन-मन
रंगीन हुआ हैं
बसंती रंगों को
जबसे फेका हैं
प्रकृति ने
हमारे ऊपर
चलो फ़गुआ में इस साल
तुम्हारे घर के तरफ आते हैं
देखकर
दूर से
एक-दुसरे को
मन से मन को
प्रणय रंग लगायेंगे
पकवान जैसे
गालो पर खिलेंगी मुस्कान
अगर हम एक-दुसरे को दिख जाते हैं
चलो अबकी साल
असर राग का दिल में समेटकर
यादों के टूटे आशियाँ को
दुरुस्त करने में जुट जाये
हमने एक-दुसरे को सदियों तक चाहा, सराहा हैं
आखिर
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार