सदियाँ बीती
बतियाँ बीती
बीते जीवन के
सुख, चैन
बीते वक्त में
यादों के लम्हे
कागज की नाँव होती हैं
स्मृति के पानी पर
तैरती रहती हैं जो
हररोज़.
हररोज़ ही डूब जाती हैं
ये यादें
जानबुझकर
या जाने-अनजाने में ही
अवसाद की लहरों से ठोकर खा
औंधे मुँह
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार