रविवार, 10 फ़रवरी 2019

तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम हैं


तुम्हारा ख्याल सुबहो-शाम
हैं
लब पे तुम्हारा नाम
और हाथो के लकीरों में
फिरभी तुम नहीं.

तुम नही
समन्दर सरीखी
कि मेरी प्रेम की नईयां आप पार लग जाये

मैंने मदद मांगी थी
खुदा से
कि तुम्हे मुझसे मिलवा दे
पर उसने तिनके जितना भी मदद करना ऊचित न समझा.

मैं एकांकी नहीं
फिरभी एकांकीपन बड़ी शिद्दत से महसूसता हूँ
कि केवल तुम्ही तो नही मिलें
जबकि मिलने को आकुल रहती थी तुम मुझसे.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 


शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !

ऋतुराज ! कहो कुछ आज !
आज मन फीका-फीका सा हैं 

हवा में रिक्तता सा हैं 
वो आज झल्लाई नही मुझपर क्योंकर
हैरान हूँ घर लौटकर 

घर पर ढेरो काम हैं 
पर एक काम को छूने से पहले 
लग रहा हैं मैं बीमार हो गया हूँ 
इतना कि
उठा नही जा रहा हैं 
बोला नही जा रहा हैं 
किसीसे कुछ बताना भी नही बन रहा हैं.. 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

तुम्हारे बगैर

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

हवा को पीना 
जहरीले साँप की तरह 
ऐसे भी जीना 
क्या जीना !

बासंती हुई समग्र पृथ्वी 
मेरा चाँद फिरभी 
चमकना नही चाहता 

ये कैसी हाथापाई हुई 
इश्क़ से कि
जान बसने नही देता 
प्राण निकलने नही देता 

तुम्हारे बगैर 
मेरा जीना 
क्या जीना !

जो ओझल हैं नजरो से 
वो नदी किनारे बैठता हैं 
सुबहो-शाम 
एकबार देखा था बरसों पहले 

लगता हैं 
वो वही हैं 
मोती जैसे अपने नौकरों-चाकरों से 
निकलवाने के लिए 
मुझे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी नजर में तू हैं


मेरी नजर में तू हैं 
तेरी नजर में कोई और 

किसीसे तुम प्यार करती हो 
किसीसे मैं भी 

दर्द हम समझते हैं 
बखूबी 
एक-दुसरे का 
पर हम एक-दुसरे से प्यार नही करते 

पर हम लाखो बातें करके भी 
एक-दुसरे से 
अजनबी रहना चाहते हैं 
न जाने क्यों  

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

धुधला-धुधला सा नजर आता हैं

पर्वत के पीछे 
तेरी यादें सोती हैं 

नदी के नीचे 
बहुत गहरें में 
तेरी यादें 
बहती हैं 

मेरे संग 

तेरी यादें 
मेरी नजरों में 
इस कदर समायी हैं कि
धुंधला-धुंधला सा नजर आता हैं 
मेरा समग्र जीवन  

तुम्हारे बगैर 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

पहाड़

Related image
ऊँचा
बहुत ऊँचा हैं 
पहाड़ 

पहाड़ के बाशिंदे 
पहाड़ से भी ऊपर 
चढने का ख्वाहिश रखते हैं 

पहाड़ो से 
निकली नदीयाँ 
पिता कहके पुकारती हैं उन्हें 

पिता नही चाहता 
उसकी पुत्री 
सदा-सदा के लिए 
दूर चली जाये

नदीयों को 
सागर पियाँ से 
मिलने की लालसा हैं बहुत प्रबल 

इसलिए 
वह अपने पिता की छत्रछाया को तजकर 
बहुत दूर निकल चुकी हैं 

पिता बूढा हो चला हैं 
उसके घुटने में दर्द होता हैं 
असह्य 

वह अगोरता हैं 
कब उसकी पुत्रियाँ आये 
और एक गिलास पानी देकर 
झट बाम लगा दे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार 



सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

तुम कहाँ हो

तुम कहाँ हो 
मैंने मन ही मन पूछा 
मन से 

मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों 
मुझसे 

मुझसे भूल क्या हुई 
जो इतना एकांकी हो गया हैं 
मेरा जीवन 

काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये 
और महकाये 
मेरे मन-मन्दिर को 


और कोई आये 
मेरा पुराना हित-मीत 
और आते ही बताये 
कि
वो ठीक हैं 
तुझसे दूरियां बनाकर

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...