सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

तुम कहाँ हो

तुम कहाँ हो 
मैंने मन ही मन पूछा 
मन से 

मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों 
मुझसे 

मुझसे भूल क्या हुई 
जो इतना एकांकी हो गया हैं 
मेरा जीवन 

काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये 
और महकाये 
मेरे मन-मन्दिर को 


और कोई आये 
मेरा पुराना हित-मीत 
और आते ही बताये 
कि
वो ठीक हैं 
तुझसे दूरियां बनाकर

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात ...
    किसी की खबर कितना बेताब कर देती है कभी ...
    अच्छे रचना है ...

    जवाब देंहटाएं

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...