तुम कहाँ हो
मैंने मन ही मन पूछा
मन से
मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों
मुझसे
मुझसे भूल क्या हुई
जो इतना एकांकी हो गया हैं
मेरा जीवन
काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये
और महकाये
मेरे मन-मन्दिर को
और कोई आये
मेरा पुराना हित-मीत
और आते ही बताये
कि
वो ठीक हैं
तुझसे दूरियां बनाकर
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार...... आदरणीया
हटाएंक्या बात ...
जवाब देंहटाएंकिसी की खबर कितना बेताब कर देती है कभी ...
अच्छे रचना है ...
बहुत-बहुत आभार...... आदरणीय
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार....... आदरणीया
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार........ आपका।
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