ऋतुराज ! कहो कुछ आज !
आज मन फीका-फीका सा हैं
हवा में रिक्तता सा हैं
वो आज झल्लाई नही मुझपर क्योंकर
हैरान हूँ घर लौटकर
घर पर ढेरो काम हैं
पर एक काम को छूने से पहले
लग रहा हैं मैं बीमार हो गया हूँ
इतना कि
उठा नही जा रहा हैं
बोला नही जा रहा हैं
किसीसे कुछ बताना भी नही बन रहा हैं..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.
जवाब देंहटाएंजी सच कहा आपने
हटाएंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार....सादर