शनिवार, 8 जून 2019

ठहरना नही है

तुम आये थे यही सोचकर 
ठहरना नही है 

वरना 
बैठकर 
आधेक घण्टे 
बतियाते

मेरे अतिथि-सत्कार का लुत्फ उठाते जरूर 

पता नही तुम क्या देखने आये थे 
मुझे 
या यह घर 
जो कभी हमारा अपना हुआ करता था

सबकुछ बिखरा-बिखरा भी देखकर 
सजाकर करीने से रखना भी 
उचित ना समझा 
मेरा और तुम्हारा विगत चार वर्ष 
तलाक़ के बाद के

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 6 जून 2019

कितनी दफा

कितनी दफा शाम को ढलते देखा है 
रात में 

कितनी दफा आधी रात के बाद लिखी है कविता 
अतिशय प्रणय महसुसकर 

तुम कितनी दफा मिली 
लेकिन हर दफा हाथ मेरा खाली रहा 
तुम्हारा प्रेम मेरे अंजुरी में पानी जैसा आया था न
हरबार

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 4 जून 2019

बीते दिनों में

बीते दिनों में 
कुछ-कुछ तुम बची हो 
कुछ-कुछ हम बचे है 

बाकी सब नदारद हो चुका है
चंचल चितवन
रुई के फाहे सी नर्म बातें
इक्का-दुक्का अनायास हुई मुलाकातें 

चौक
गली 
मन्दिर
और पगडण्डी
टूटे-फूटे खण्डहर से दिखते है 

कहाँ तुम बस गयी हो 
कि इधर कभी आना ही नही हुआ 
तुम्हारा 

और कहाँ मैं हु कि
दूर-दूर तक दिखाई ही नही देती
तुम।

रेखचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 2 जून 2019

जिस तन को लगे वही जाने

 
पलको पे सजाके रखा था 
तुम्हें 
क्या तुम्हे इसका एहसास नही 

तुम जिसे दिल से दबाये रखी हो 
उसका एहसास तो होगा न तुम्हे
बहोत 

खैर छोड़ो जिस तन को लगे वही जाने 
क्या होता है प्यार, जज्बात, एहसास से हासिल दर्द

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


शनिवार, 1 जून 2019

कवि की क्या जिंदगी !

कवि की क्या जिंदगी !

बस यू समझ लीजिए
जैसे रवि जलता है अपने से लिपटी आग में 

ठीक उसी तरह कवि जलता है 

लेकिन गम की परायी आग में

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


गुरुवार, 30 मई 2019

लौटे नही बबुआ के पापा

नदी खामोशी की 
बहती जाती हैं
उसके भीतर ही भीतर 

वो कुछ कहती नही 
किसीसे
आजकल

आजकल 
पैसों का बड़ा मारामारी है 

बड़ी किल्लत चल रही है
उसके घर 

चार दिन हो गये लौटे नही बबुआ के पापा
कही कूछ हो वो न गया हो उनको 

दरअसल बिहार मे वो शराब लेकर गये है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



बुधवार, 29 मई 2019

मिलने से कब बाज आनेवाले है हम

ढेर सारी बातें थी 
जो तुमसे पूछनी अभी बाकी थी 

ना तुमने बुलाया
ना मैं आया 
तुम्हारे घर 

ऐसा नही है कि 
गलती मेरी या तेरी है

दरअसल किस्मत की रेखाएं हमारी आड़ी-टेड़ी है

नही तो मिलने से कब बाज आनेवाले है हम।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...