शनिवार, 8 जून 2019

ठहरना नही है

तुम आये थे यही सोचकर 
ठहरना नही है 

वरना 
बैठकर 
आधेक घण्टे 
बतियाते

मेरे अतिथि-सत्कार का लुत्फ उठाते जरूर 

पता नही तुम क्या देखने आये थे 
मुझे 
या यह घर 
जो कभी हमारा अपना हुआ करता था

सबकुछ बिखरा-बिखरा भी देखकर 
सजाकर करीने से रखना भी 
उचित ना समझा 
मेरा और तुम्हारा विगत चार वर्ष 
तलाक़ के बाद के

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

1 टिप्पणी:

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