तुम आये थे यही सोचकर
ठहरना नही है
वरना
बैठकर
आधेक घण्टे
बतियाते
मेरे अतिथि-सत्कार का लुत्फ उठाते जरूर
पता नही तुम क्या देखने आये थे
मुझे
या यह घर
जो कभी हमारा अपना हुआ करता था
सबकुछ बिखरा-बिखरा भी देखकर
सजाकर करीने से रखना भी
उचित ना समझा
मेरा और तुम्हारा विगत चार वर्ष
तलाक़ के बाद के
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज