बच्चे भी काम पर जाते है
जिनके माँ-बाप नही होते
अनाथ होते है खासकर वो
वो भी बच्चा जाता है काम पर
जिसका बाप दिनभर दारू-भाग-चरस
गांजा पीता है
या जिसकी माँ बस पैसे की भूखी होती है
मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है
जरा गौर फरमाईयेगा तो
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।
अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में
चिलचिलाती धूप में
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन, तेल आदि के डिब्बे और बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार