सोमवार, 22 अप्रैल 2019

हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है

तुम्हें जान कहते थे हम अपनी

मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर 
भी 
बेघर हूँ 

सारा संसार अपनापन दिखाता था 
जब पहले-पहल हम मिले थे 

गीत नुसरत फतेह अली खान का 
और चित्र राजा रवि वर्मा का 
सुना 
देखा 
सराहा करते थे 

अब बात और है 
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो 
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है 
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 21 अप्रैल 2019

आदमी अकेले जीना नही चाहता

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आदमी अकेले आता है 
और अकेले जाता है 

लेकिन अकेले जीना नही चाहता 
ना जाने क्यों !

वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का 
और खुद ही फँसता जाता है 

उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है 
उतना ही उलझता जाता है 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

तेरी-मेरी कहानी

तेरी-मेरी कहानी 
गहन चुप्पी में दफन होती जा रही है 

सच और झूठ का बहुत ज्यादा था पहले फ़ासला
अब सिकुड़कर एक हुआ जा रहा है 

किससे कहे 
किससे छुपा ले 
आपबीती 

वो आपबीती जो बीतकर भी 
नही बीती है आजतक 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

हम याद आयेंगे

हम याद आयेंगे 
जब यादें भी धुँआ की तरह उड़ती नजर आयेंगी

तुम्हें कोई फर्क नही पड़ता 
कि कैसे जी लिया 
( जंगल सा सघन जीवन )
और कैसे जीता हूँ 
तुम्हारे बगैर 

होंठो पर शिकायत रही हमेशा से 
बस हृदय खामोश रहा 
कि वो कभीभी लौट सकती है 
मौक़ा पाते 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

धर्म, ईश्वर और धर्मउपदेशक

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धर्म 

धर्म दो धारी तलवार है !

अन्धानुसरण भी बुरा है 
और उपेक्षित मन से इसे देखना भी बुरा है 

किन्तु गला तो दोनों ही सुरत में कटना है 


ईश्वर

कोई मुझसे एकदिन पूछ बैठा 
तुम नास्तिक हो कि आस्तिक !
..मन्दिर तो तुम जाते हो लेकिन पूजा-पाठ नही करते क्यों !

मैंने कई तर्क दिए यथा मुझे दूसरे के आस्था की परवाह है इसलिए मन्दिर जाता हूँ..
लेकिन मुझे ईश्वर पर उतना विश्वास नही 
जितना होना चाहिए.. 

दरअसल, आजतक मैंने किसीको नही सुना
यह कहते हुए कि
ईश्वर है !

यह कहते हुए जरुर सुना है कि
ईश्वर है मगर नजर नही आता हरकिसीको ! 


धर्मउपदेशक

धर्मउपदेशक धर्म की व्याख्या मनमानी करते है 
और ईश्वर की प्रशंसा करते नही थकते 

लेकिन उनको मेरा सुझाव है कि
धर्म को कर्म से मिलाये 
और धर्म को धर्म ही बनाये रखने की कोशिश करे 
न कि व्यवसाय !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मुझे नही मरना था

मुझे नही मरना था 
घुट-घुटकर 

मुझे जीना था तेरे प्यार में भी 
जी खोलकर 

मगर 
तूने आहिस्ता-आहिस्ता खंजर भोका 
मेरे उसी हृदय में 
जिसमे प्रेम के पुष्प खिल चुके थे 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हें 
महक सुंघाने के लिए 

मैं गवार था 
मगर उतना भी नही कि 
नजरों से गिराकर अपने 
मेरा जीना दुश्वार किए 
( समझ न सकू )

फिरभी मैं चुप रहा 
जबकि मैं चुप रहनेवालो में से नही हूँ 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

जीने दो मुझे

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जीने दो मुझे 
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ 

खाने को भोजन नहीं मिलता 
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ 

आसमान का छत 
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है 
गर्मीवाली रातों में 
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें 
तन , मन को काट, बाँट देती है 
खुली हवा में 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...