प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
इन कजरारी आँखों ने - 1
बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने
पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे
पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं इनमे
मुझे दीखते
मुझे दीखते
ये तुम्हारी कजरारी आँखें
जंगल में लगी आग की तरह
फैलाती है
बेचैनी
मुझमें
मैं कहाँ चला जाऊ
कि इनसे सामना ना हो कभी
यही सोचता रहता हूँ ..
समझ से परे है यारों को भी समझा पाना
कि डाकूओं की टोली आती हो जैसे
दिन-दहाड़े
मुझे लूटने
हाँ, तुम्हारी ही ये कजरारी आँखें !
जबकि मेरे पास कुछ भी नही बचा
फिरभी
-रवीन्द्र भारद्वाज
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
गुरुवार, 4 अप्रैल 2019
बुधवार, 3 अप्रैल 2019
जरूरी था
जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते
राज जो दिल में दबा रखा था हमने
जरूरी था उसका खुलना..
आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही
जबसे तुम फिसल गये
मेरे आस-पास से
काई पर पड़ते ही पैर की तरह
बेबस है
लाचार हो गई हैं जिन्दगी
किसी एक के ना मिलने के वजह से
नाहक ही
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
मंगलवार, 2 अप्रैल 2019
औरत ना होती तो
औरत ना होती तो
प्यार ना उपजा होता मर्द के अंदर
नदियाँ ना होती तो
सागर रेगिस्तान की तरह तपता रहता
ह्दय में पीड़ा का मंथन ना होता तो
कोई क्यों सृजता कविता !
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
सोमवार, 1 अप्रैल 2019
गेंहू की फ़सल पक गई
गेंहू की फ़सल पक गई
धूप भी गुस्से में रहने लगा है
नदियों का गला सूखता जा रहा है
बच्चे, बुढ्ढे अपना शर्ट, कुर्ता
उतार रखने लगें है
अलगनी पर
स्कूल की छुट्टियाँ कब होंगी..
यही बात
कक्षा दर कक्षा घुमती हुई
भटक जा रही है
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
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