शनिवार, 26 जनवरी 2019

ताजमहल सबसे प्यारा हैं !


बिजली जब कड़कती हैं 
बादल जब गरजता हैं 
ऐसे आलम में 
तुम्हारी बाहों के झूले पर 
लेटकर 
तुमसे बतियाँने को जी चाहता हैं 

जी चाहता हैं 
तुम्हारी बखान किये बगैर 
मैं चुप ना होऊ 
कभी 
लाख चुप कराने पर भी तुम्हारे 

वायलिन सा 
रह-रहके बजता ये संगीत 
आकाश और धरती की आबोहवा में 
डरावना तो हैं तनिक पर 
ध्यान से सुनने पर 
बहुत मधुर लगने लगा हैं 

सफेद रस्सियों सी 
गिर रही हैं 
बुँदे 
देखो 
वो आईना हैं हमारा !

मैं 
तुम 
और ये दुनिया 
तीनो पर 
कोई नियम, क़ानून लागू नही होते 
हाल-फ़िलहाल 

मैं सागर में कूद पडू 
गोखागोर बनके 
और बेसकिमती मोती लाऊ 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए 

मैं अंतरिक्ष यान बन 
पुरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना भूलकर 
चाँद, तारे तोड़ लाऊ 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए 

मैं हवा बन 
पूरी पृथ्वी का सरपट सैर कर
तुम्हे बताऊ 
ताजमहल सबसे प्यारा हैं !

- रवीन्द्र भारद्वाज


चित्र गूगल से साभार 

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

तुम शायद जानती हो ये

मेरे दर्द की दवा तू हैं 

तुम शायद जानती हो ये 


मैंने सारी दुनिया से बैर लिया 
तुमसे प्रेम करके 

तुम शायद जानती हो ये 


मैं हिंसक पशु था 
हाँ, मैं था हिंसक पशु !

तुम जानती थी बखूबी ये 


मुझे इंसान बना 
भगवान बन बैठे आखिर तुम 

तुमने अपने इस कृत्य पर गौर नही किया 
कभी 
क्यों?

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

जब मैं अवसाद में होता हूँ

जब मैं अवसाद में होता हूँ
कविता सृजता हूँ

तुम्हे मालूम पडूंगा मैं भला-चंगा
पर मेरी कविताएँ
बांचके
सोचना-
कैसे जी लेता हूँ मैं
तुम्हे खोकर
तुम्हारे लिए रोकर
बेवजह

अवसाद
वो खाई
जिसमे बलिष्ठ से बलिष्ठ ख्वाहिशों को
दम तोड़ देना हैं यु ही

अवसाद को सहकर जीना बहुत हिम्मत का काम होता हैं मेरे दोस्त !

अवसाद
गले तक कसी रस्सी हैं
जो जबरन आत्महत्या करवाना चाहता हैं मेरा या फिर तुम्हारा

फिरभी
मेरी कविताएँ
तुम्हे पराजित करती
मुझे जीना का सलीका बताती, सिखाती चलती हैं मेरे साथ
- रवीन्द्र भारद्वाज


चित्र गूगल से साभार 










बुधवार, 23 जनवरी 2019

उसे भी प्यार हुआ.

उसके नैनो का तीर 
मेरे ह्दय के पार हुआ. 

मुझे भी प्यार हुआ 
और उसे भी प्यार हुआ. 

मुझे खोये रहने दो सपनो में 
बहुत सच्चा लगता हैं ये व्यापार हुआ.

न सुनाओ अखबार की खबरे कि
यहाँ बलात्कार, वहाँ कत्ल सरेआम हुआ. 

मुझे उससे राब्ता उसे मुझसे 
अब क्या कहे तुम्हे 'गुरुदेव' प्यार हुआ.

रेखाचित्र व ग़ज़ल - रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुदेव - यह  उपनाम हैं मेरा, मित्र सम्बोधित करते हैं 


मंगलवार, 22 जनवरी 2019

प्रेम उपद्रव हैं !

अब भूल जाते हैं हम तुम्हें 

आखिर तुम भी किसीकी बेटी हो !
बहन हो !
बुआ हो !..

तुम तो जानती ही हो न 
प्रेम उपद्रव हैं !

और जिस जलधारा का नाम था प्रेम 
वो दूर 
न जाने कहाँ 
पहुँच गया होगा 
बहते-बहते 

और हम यही हैं.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 20 जनवरी 2019

वो भी क्या दिन थे

सारी रात जगते थे 
जब हम मोबाइल पर बातें करते थे 

बातें प्याज के छिलके की तरह होती हैं 
एक बाद दुसरी 
दुसरी के बाद तीसरी 
फिर चौथी 
पचवी..

वो भी क्या दिन थे 
जगना पार लगता था खूब 

अब दफ़्तर से आते-आते बिस्तर पर गिर जाते हैं..

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 19 जनवरी 2019

तू हैं

मेरी नजर जहाँतक जाती हैं 
वहाँतक तू हैं 

मैं जहाँतक सोच पाता हूँ 
उसकी आखिरी पायदान तू हैं 

तूने जैसे रंग भर दिया हो 
दसों दिशाओं में 
बेसबब,बेमतलब का भी रंग का दुशाला ओढ़े 
तू हैं 

इस 
चुभोती सी सर्द मौसम में 
ह्दय में आग धधकाती
तू हैं 

बसंत की हरियाली बिछाती 
मेरे प्रथम प्रणय पथ में 
तू हैं 

तू हैं मेरे सामीप्य तो 
दुःख मुझसे कातर हैं 

किन्तु दूर होने लगो तो 
साँसों में अड़चन सी होने लगती हैं 
जीवन 
ग्रीष्म की दुपहरी हो जाती हैं 
और रातें 
पलानी से चुति आधी रात की बरसाती रात.

देखो घर-गृहस्थी शुरू करने से पहले 
ऐसा करते हैं 
मिल लेते हैं 
हाँ, सही सूना, मिल लेते हैं 

क्या पता हम साथ-साथ शुरू करना चाह रहे हो 
...अपना घर-गृहस्थी.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...