मंगलवार, 22 जनवरी 2019

प्रेम उपद्रव हैं !

अब भूल जाते हैं हम तुम्हें 

आखिर तुम भी किसीकी बेटी हो !
बहन हो !
बुआ हो !..

तुम तो जानती ही हो न 
प्रेम उपद्रव हैं !

और जिस जलधारा का नाम था प्रेम 
वो दूर 
न जाने कहाँ 
पहुँच गया होगा 
बहते-बहते 

और हम यही हैं.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 20 जनवरी 2019

वो भी क्या दिन थे

सारी रात जगते थे 
जब हम मोबाइल पर बातें करते थे 

बातें प्याज के छिलके की तरह होती हैं 
एक बाद दुसरी 
दुसरी के बाद तीसरी 
फिर चौथी 
पचवी..

वो भी क्या दिन थे 
जगना पार लगता था खूब 

अब दफ़्तर से आते-आते बिस्तर पर गिर जाते हैं..

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 19 जनवरी 2019

तू हैं

मेरी नजर जहाँतक जाती हैं 
वहाँतक तू हैं 

मैं जहाँतक सोच पाता हूँ 
उसकी आखिरी पायदान तू हैं 

तूने जैसे रंग भर दिया हो 
दसों दिशाओं में 
बेसबब,बेमतलब का भी रंग का दुशाला ओढ़े 
तू हैं 

इस 
चुभोती सी सर्द मौसम में 
ह्दय में आग धधकाती
तू हैं 

बसंत की हरियाली बिछाती 
मेरे प्रथम प्रणय पथ में 
तू हैं 

तू हैं मेरे सामीप्य तो 
दुःख मुझसे कातर हैं 

किन्तु दूर होने लगो तो 
साँसों में अड़चन सी होने लगती हैं 
जीवन 
ग्रीष्म की दुपहरी हो जाती हैं 
और रातें 
पलानी से चुति आधी रात की बरसाती रात.

देखो घर-गृहस्थी शुरू करने से पहले 
ऐसा करते हैं 
मिल लेते हैं 
हाँ, सही सूना, मिल लेते हैं 

क्या पता हम साथ-साथ शुरू करना चाह रहे हो 
...अपना घर-गृहस्थी.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

मैं बट गई


मैं बट गई
दो हिस्सों में

एक हिस्से में, मेरा शरीर हैं
दुसरे में, मेरा हृदय

हृदय, उसके पास हैं जिसके पास हृदय नही
और शरीर, उसके पास हैं जिसके पास भी हृदय नही.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

गाँव में डर समा गया हैं

गूगल से साभार 
कही कोई बात तो हैं 
जो मुझे सोने नही देती ठीक से 

गाँव में 
डर समा गया हैं 

कोई किसीका हालचाल लेने से भी कतराता हैं 

जबसे हरखू का 
घर जला हैं 

भय की आग में जल रहा हैं हरकोई 

किसने जलाया 
क्यों जलाया 
ये हरखू को भी नही पता 

उड़ती-उड़ती बात सुनी हैं 
हरखू की बेटी शादी लायक हो चुकी हैं 
और वह दिन-रात एक करके 
एक-एक पैसा जोड़ रहा था 
उसे ब्याहने के लिए

लेकिन चौधरी का बेटा 
सूना हैं घूरता रहता हैं उसको बहुत 

शायद यही कारण पर्याप्त हैं 
उसका घर जल जाने के लिए|
- रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 16 जनवरी 2019

बतियाना बहुत जरूरी हो गया हैं

गूगल से साभार 
वो भोजन पकाने में मशगूल रहती हैं 

मैं कविता रचने में 

बच्चे खेलने में ..

ऐसे बहुत दिन से चल रहा हैं 
थोड़ा पास बैठकर 
साथ-साथ 
बतियाना बहुत जरूरी हो गया हैं
- रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 14 जनवरी 2019

वो वक्त चुप हैं

हवा में तैरती हैं 
गूंज तुम्हारी 

तुम्हारे दुपट्टे के झुटपुटे 
में 
थी 
जिन्दगी हमारी 

किसने किया 
हमें तुमसे अलग 
चलो 
पूछें 
आज 
उस वक्त की क्या थी मजबूरी 

वो वक्त 
चुप हैं
मौन के तरह 

लेकिन 
मौन की प्रकृति 
अशांत होती हैं सदा.

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...