शनिवार, 22 दिसंबर 2018

हवा और समय

Art by Ravindra Bhardvaj
जब हवा चलती है 
तुम्हारे साथ होने का एहसास होता है 

जब हवा रुक जाती है 
तुम्हारे गुम हो जाने का एहसास होता है 

जब-जब गुजरता हूँ 
गाँव के इकलौते पुराने पीपल के पेड़ के नीचे से 
तुम्हारे गुनगुनाने का आवाज़ सुनता हूँ 

हवा 
और समय 
तुम्हारे मीत है 

जब चाहो भेज देती हो 
जब चाहो बुला लेती हो.
- रवीन्द्र भारद्वाज 


शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

उसकी प्रतीक्षा में

Art by Ravindra Bhardvaj
ओढ़नी
लाल रंग की 
सुबह की 

ओढ़नी
सफेद रंग की 
दोपहर की 

ओढ़नी
काली 
सांझ की 

सुबह से 
दोपहर 

दोपहर से 
शाम हो गई

और मैं उसकी प्रतीक्षा में 
प्रेमी से 
कवि बनता जा रहा हूँ.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

ये दिल ! क्यू प्यार करे !

Art by Ravindra Bhardvaj
बेपरवाह प्यार के सहारे 
कोई कबतक जीए

मरना तो सबको हैं एकदिन 
जीते जी 
फिर क्यू मरे !

उस प्यार में 
दाग है 
जगह-जगह.. 

फिरभी ये दिल !
क्यू प्यार करे !
- रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

मैं नही चाहता


Art by Ravindra Bhardvaj
वो मेरे पास आई 
शर्माते हुए 

मुझसे बात करने की कोशिश की 
और कामयाब भी रही 

उसके लिए बहुत मुश्किल है 
मुझसे प्रेम करना 

क्योंकि
मैं नही चाहता 
प्रणय-संबंध उससे रखना.
- रवीन्द्र भारद्वाज 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब

अब देखकर तुमको 
यकीन नही होता 
कि तुम वही हो 
जो मुझपे मरती थी कभी 

गालो पर 
हल्का सा गढ्ढा 
बनता था 
उनदिनों हँसती भी थी तुम खूब 

हवा में उड़-उड़ जाती थी 
रेशम की वो गुलाबी ओढ़नी
जिसे महीने में दो-एक बार लगाती थी तुम 

जिस किसीदिन 
मैं तुम्हारा पीछा करता 
मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए 
साईकिल का पैन्डील तेज मारती 
तब तुम सातवे आसमान पर पहुँचना चाहती थी न !
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

ठहर जाओ

मेरी नजर में, तू है 
तेरी नजर में, मैं 

अब जाना कहां..
भूलता जा रहा हूँ मैं यह 

शाम ढलने को है 
डर लग रहा है 
फिरसे तन्हा होनेवाला हूँ मैं.

एकबारगी 
ठहर जाओ 
मेरे घर 
घर का कोना-कोना 
हँसने लगेगा 
चल चलो न अपने घर 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 16 दिसंबर 2018

मुस्कुराओ कि..

Art by Ravindra Bhardvaj
मुस्कुराओ कि
हर गम बोझ सा उतर जाये

रुत बसंत का 
फिरसे आ जाये

लम्बी जुदाई के बाद 
वस्ल की आरजू काश ! आज ही पूरी हो जाये..


सुनाओ कि
झिझक न लगे 
कोई बात कहने में..

रोयेंगे हम आज साथ-साथ 
बहाना निकल ही आयेगा 
कोई न कोई 
अफ़सोस का

ख़ुशी के आंसू भी बहेंगे 
जीवन से गहरे असंतोष के बाद 
तुमसे फिरसे मिलने पर. 
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...