गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी नजर में तू हैं


मेरी नजर में तू हैं 
तेरी नजर में कोई और 

किसीसे तुम प्यार करती हो 
किसीसे मैं भी 

दर्द हम समझते हैं 
बखूबी 
एक-दुसरे का 
पर हम एक-दुसरे से प्यार नही करते 

पर हम लाखो बातें करके भी 
एक-दुसरे से 
अजनबी रहना चाहते हैं 
न जाने क्यों  

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

धुधला-धुधला सा नजर आता हैं

पर्वत के पीछे 
तेरी यादें सोती हैं 

नदी के नीचे 
बहुत गहरें में 
तेरी यादें 
बहती हैं 

मेरे संग 

तेरी यादें 
मेरी नजरों में 
इस कदर समायी हैं कि
धुंधला-धुंधला सा नजर आता हैं 
मेरा समग्र जीवन  

तुम्हारे बगैर 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

पहाड़

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ऊँचा
बहुत ऊँचा हैं 
पहाड़ 

पहाड़ के बाशिंदे 
पहाड़ से भी ऊपर 
चढने का ख्वाहिश रखते हैं 

पहाड़ो से 
निकली नदीयाँ 
पिता कहके पुकारती हैं उन्हें 

पिता नही चाहता 
उसकी पुत्री 
सदा-सदा के लिए 
दूर चली जाये

नदीयों को 
सागर पियाँ से 
मिलने की लालसा हैं बहुत प्रबल 

इसलिए 
वह अपने पिता की छत्रछाया को तजकर 
बहुत दूर निकल चुकी हैं 

पिता बूढा हो चला हैं 
उसके घुटने में दर्द होता हैं 
असह्य 

वह अगोरता हैं 
कब उसकी पुत्रियाँ आये 
और एक गिलास पानी देकर 
झट बाम लगा दे..

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार 



सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

तुम कहाँ हो

तुम कहाँ हो 
मैंने मन ही मन पूछा 
मन से 

मन बहुत कातर रहता हैं
इनदिनों 
मुझसे 

मुझसे भूल क्या हुई 
जो इतना एकांकी हो गया हैं 
मेरा जीवन 

काश !
कही से कोई ख़ुशबू आये 
और महकाये 
मेरे मन-मन्दिर को 


और कोई आये 
मेरा पुराना हित-मीत 
और आते ही बताये 
कि
वो ठीक हैं 
तुझसे दूरियां बनाकर

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

दो पंछी

दो पंछी 
एक-दुसरे के हमदम 
एक-दुसरे के साथी !

बिजली की नंगी तार पर 
बैठे हैं वो दो पंछी 
जो लगभग मूर्तिवत हैं 

सुबह, स्वर्ण-गर्भ से जन्मी शिशू हैं 
सूर्य, गेंदा का फूल 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

मुझसे मिलना ये मेरे दोस्त !

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मुझसे मिलना 
ये मेरे दोस्त !
फुर्सत निकालके

पर तुम्हे तो फुर्सत ही नही 
कि
कभी तुम भी जाहिर करो 
मिलने का मन 

व्यस्तता की फ़सल लहलहा रही हैं 
देखो 
हर तरफ 

हर घर, कुल, समाज 
यहांतक कि गाँव भी व्यस्तता में मग्न हैं 

उस बरगद के तरफ कोई थूकता नही 
जिस बरगद के नीचे चौपाले बिछती थी 
बातों-बातों में 
सुबह-शाम गुजर जाती थी 
हमारे बाप, ददाओ की.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

सुबह हो गई

सुबह हो गई 
उजास फ़ैल गई 

पंछी 
अपने घरौंदें से निकल 
अन्न एकत्र करने में 
जुट गये फिर 

फिर हम काम पर जायेंगे 
तुम्हे साड़ी खरीदना हैं 
लहंगेवाला 
दिनभर हाथ-पैर चलायेंगे
तब न जुटा पायेंगे हम कुछ रूपए..
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...