बुधवार, 22 जनवरी 2020

हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है

तुम्हारे गाँव से उड़ते आ रहे पंछी
गोधूलि बेला
मन को सहसा याद दिलाये कि
तमाम पाबन्दियों के बावजूद
हम तुमसे प्रेम जारी रख सकते है

हम तुम्हारे आसमान में
इन्ही पंछी सरीखे
उड़ सकते है

उड़ते रहे है आखिर
एक सदी तक

एक सदी के बाद ही
बदला है वही सब
जो बदलाव तुम देखना चाहती थी।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...