मंगलवार, 20 अगस्त 2019

तू मेरा नही तो क्या

तू मेरा नही तो क्या 
मेरा हुआ करता था तू भी कभी 

कभी मेरे बाजुओं में दम तोड़ने की आरजू थी तुम्हारी

नदी सरीखी बहने का इरादा था तुम्हारा 
मेरे अंदर

कभी न गुजरनेवाले पूर्णरूप से मेघ की तरह 
तुम चलते रहना चाहती थी हमेशा
मेरे ऊपर से 

समुन्दर के किनारे लेटकर 
खिली धूप में 
गॉगल्स में से देखने की एक-दूसरे की इच्छा तो 
अधूरी रह गयी।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

त्रिकोणीय प्रेम

आग इस दिल मे लगी है तो उस दिल मे क्यों नही !

प्यार मुझे है तो तुम्हे क्यों नही !


त्रिकोणीय प्रेम 
अवसादग्रस्त कर देता है 

हम जैसे मिलते है छुपते-छुपाते 
एक-दूसरे-तीसरे से 
सुकून को भरने नही देता 
हमारे अंदर

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



बुधवार, 14 अगस्त 2019

धरती

वो 
खुदही तपेगी 
भीजेंगी
ठिठुरेगी 
लेकिन किसी से कुछ कहेगी नही 
ओरहन जैसे 

वो 
सहनशीलता की पर्याय है

वो 
हमारे जीवन की आधार है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

जबसे तुम्हे मिल गया कोई

तूने रास्ते बदले 
कसमे तोड़े 
वादों को ताक पर रखा मेरे
जबसे तुम्हे मिल गया कोई

कोई मुझसे ज्यादा तुम्हे चाहने लगा 
यकीन नही होता 

याद करो 
मैने तुम्हे जीना सिखाया था 
हजार नाउम्मीदी में 

हँसना सिखाया
तुम्हारे बेहिसाब हालातो के गरीबी में 

मै हर मोड़ पर जिंदगी के तुम्हारे
कवच जैसे खड़ा रहा
दुनिया के जहरीले तीरो और बरछी से बचाने के लिए
तुम्हे 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 11 अगस्त 2019

नदी की गति तो देखो

नदी की गति तो देखो 
कि कितने कंकड़, रेत बह चले 
साथ उसके 

वो अपना पल्लू हमेशा ही झाड़ती रही 
फिरभी बधे रहे वो सबके-सब पल्लू से उसके

शायद गाँठ बांधी थी नदी
एक के अनुपस्थिति में 
दूसरे की 
दूसरे की 
पहले की अनुपस्थिति में

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

मेरे दोस्त !

एक समय था
वो थी 
मै था
और तुम थे मेरे दोस्त !

एक समय है ये भी 
वो अजनबी है
मै अभागा हूँ 
और तुम हो बेसहारा मेरे दोस्त ! 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 5 अगस्त 2019

नदी फिरभी नही समायी मुझमे

समन्दर था मैं

नदी फिरभी नही समायी मुझमे

दोनो बहे तो थे 
एक-दूसरे मे घुलने-मिलने के लिये 
लेकिन
उफ्फ, चट्टानों ने रास्ता बदल दिया
हमारा

घूम-फिरकर मिले भी तो 
तट भीगा 
केवल 
आँसुओ के फुहारों से 

और ऐसे मिलकर भी 
न जाने क्यों नही मिले फिरभी
हम-तुम

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...