रविवार, 11 अगस्त 2019

नदी की गति तो देखो

नदी की गति तो देखो 
कि कितने कंकड़, रेत बह चले 
साथ उसके 

वो अपना पल्लू हमेशा ही झाड़ती रही 
फिरभी बधे रहे वो सबके-सब पल्लू से उसके

शायद गाँठ बांधी थी नदी
एक के अनुपस्थिति में 
दूसरे की 
दूसरे की 
पहले की अनुपस्थिति में

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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  2. बेहतरीन पेन्सिल-स्केच रवीन्द्र जी ! नदी किसी की नहीं होती, सब को भुलावे में रखती है और शहर-दर- शहर भटकती रहती है, शहर को लगता वो उसकी है , पर वो तो हर शहर के लिए बनी है और जब समुन्दर में मिलती है तब उसकी संज्ञा बदल चुकी होती है

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  3. आपकी रचनाएँ कुछ तो अलग सा कहती है प्रिय रविन्द्र जी | सस्नेह शुभकामनायें भावपूर्ण सृजन के लिए |

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