रविवार, 9 दिसंबर 2018

रुक जाओ ना

मैंने तो ये सोचा ही नही था 
तुम आई हो इसबार भी चली जाओगी 

होठो पर हँसी रखकर मेरे 
जेहन में लिखकर अल्फाज़ प्यार के 
कल चली जाओगी न 

ना जाना 
मुझे छोड़कर तन्हा 
तन्हा सफर नही कटता
यादें कटती है 

होठो पर 
होठ धर दो अपने 
बाहों में सिमट जाओ 
यू कि पूरी दुनिया लगु मैं तेरी 

तू मुझपे इतना क्यू बिफरती है 
मैं क्या कोई अजनबी हू 
नही न 
तब फिर 
रुक जाओ ना 
इस एक जनम के लिए 

प्लीज..
अगले जनम का मैं नही जानता.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

गूंज रही है शहनाई..

Art by Ravindra Bhardvaj 
गूंज रही है शहनाई 
हवाओं में 

बचपन के मीत,
प्रीत 
बिछुड़ेंगे कल 

कल के बाद 
पलको पर रह जायेंगी याद भर 
घर-आंगन-मुंडेर की..

और आँखों में आँसू होंगे 
ख़ुशी के कि गम के 
ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल होगा.. 
कल के बाद.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज




गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

अच्छा लगता है

जाने से पहले 
हाथ हिलाना हवा में 
बाय-बाय करने को मुझे 
अच्छा लगता है 

अच्छा लगता है 
तुम्हारा चेहरा देखकर 
विदा लेना.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

सिर्फ मेरे लिए

तुम महकती थी 
जब गुलाब थी 

तुम उड़ती थी 
जब परवाज थी 

तुम चलती थी 
जब नदी थी 


तुम ठहरी हो अब 
धरती हो 

बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया 
तुम नही लड़ सकती अब हरकिसीसे 
सिर्फ मेरे लिए.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

बहुत याद आउंगा मैं

 

थोड़ा सा बरस जा 
पूरा भींग जाउंगा मैं 

थोड़ा सा तरस जा 
बहुत याद आउंगा मैं 

एकबार तो पाने की कोशिश कर पगली !
मुझे 
पूरा का पूरा मिलूंगा मैं तुम्हें.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

मुझे तुम नही मिले..

मुझे तुम नही मिलें 
ना तुम्हारा नसीब मिला 

तुम खो गये अचानक से 
मेरे साथ चलते-चलते 
पल दो पल का तो सफर रहा 

माना अजनबी चेहरे को पढना होता है बार-बार 
पर धोका होने या मिलने का 
तुम्हारे मन में हमेशा संशय बना रहा.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 2 दिसंबर 2018

तुम चुप थी..

तूने बेपरवाह रखा 
मुझे 
अपने गम से 

मेरी आँखे नम रही 
क्यूंकि तुम नही मिली कभी फुर्सत निकालके 

बड़ी आरज़ू थी कि
मिलते ही 
बताओगी
ना मिलने का सबब 

पर 
तुम चुप थी
ऐसे 
जैसे आकाश 

तुम पाषाण बन चुकी थी  
न जाने कौन तुम्हारी शोख-चंचलता को 
नष्ट कर दिया था 
हर सिरे से.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...