तू मेरा नही तो क्या
मेरा हुआ करता था तू भी कभी
कभी मेरे बाजुओं में दम तोड़ने की आरजू थी तुम्हारी
नदी सरीखी बहने का इरादा था तुम्हारा
मेरे अंदर
कभी न गुजरनेवाले पूर्णरूप से मेघ की तरह
तुम चलते रहना चाहती थी हमेशा
मेरे ऊपर से
समुन्दर के किनारे लेटकर
खिली धूप में
गॉगल्स में से देखने की एक-दूसरे की इच्छा तो
अधूरी रह गयी।
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज