गुरुवार, 11 जुलाई 2019

बारिश में भीगने से डरते है लोग

जिंदा है हम मगर
जिंदादिली से नही जीते है जिंदगी

गाँव मे सूखा पड़ता है
शहर फिरभी हरा रहता है

हम इन्द्र की पूजा-उपासना करते है ताकि वर्षा हो 
जबकि शहरो में बारिश में भीगने से डरते है लोग।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


मंगलवार, 9 जुलाई 2019

वो वक्त चला गया

वो वक्त चला गया 
जिसमें हम-तुम हमनवां थे 
एक-दूसरे के 

अब जो वक्त चल रहा है 
उसमे दुश्मन है हम 
एक-दुसरे के
अजीब तरह के

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


गुरुवार, 4 जुलाई 2019

बरसात की तरह होती है बातें

बरसात की तरह होती है बातें
हमारी-तुम्हारी

जितनी बेफ़िक्री से ये दुनिया चलती है
उतनी ही बेफ़िक्री से हम चलते है 
तुम अपने रास्ते
मै अपने रास्ते 

लेकिन मिलते ही अचानक से 
बरसात की तरह होती है बातें
हमारी-तुम्हारी

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

सोमवार, 1 जुलाई 2019

तुम्हारी यादे

सागर उफनके 
शांत हो जायेगा

घड़े का पानी छलक के 
अशांत हो जायेगा

दबे पाँव आती है 
तुम्हारी यादे 
सन्नाटे से जमी रातों में 
और मोम जैसे पिघलाती है मुझे 

शांत मन अशांत हो जाता है
एक ही जगह पर बैठे-बैठे 
सैकड़ों जगह पर ढूढ़ता-फिरता हू 
तुम्हारे कदमो का निशान

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

शनिवार, 29 जून 2019

मजदूर

मजदूर 
वो लोग होते है 
जो मजबूर होते है 

हालात के मारे 
देखने मात्र से लगते है बेचारे
मजदूर वो लोग होते है 

मजदूर वो लोग होते है 
जिनके हित का सोच भी नही सकते 
बहुत बड़े-बड़े लोग

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


गुरुवार, 27 जून 2019

बारिश में

हल्की बारिश में हाथ फैलाकर वो नाँची थी 
कौतुहल से भरा मन मेरा नाँचा
उसे इतना खुश देखकर

उसकी गम्भीरता देखकर डर लगता था 
उसके चेहरे से 
वो इतना खुश तो कभी नही दिखी थी 
किसीको 

कल उसके पिता लौटे थे घर 
तड़ीपार हो चुके है जो 
(किसीसे पूछने पर पता चला)

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार



मंगलवार, 25 जून 2019

मिलना नही हुआ सदियो तलक

कहाँ तुम थी 
कहाँ मै था कि
मिलना नही हुआ सदियो तलक 

जबकि एक जैसे हालातो से 
हम कितनी ही बार टकराये
चकराये 

मगर आस बधाने भी नही आयी तुम 
हवा के एक झोंका के तरह भी

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - सोमनाथ सेन 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...