सोमवार, 29 अप्रैल 2019

वो प्यार के शुरुआती दिन थे

कभी बादलो पर पैर रखकर घूम आये थे 
पूरा आकाश 
दरअसल, वो प्यार के शुरुआती दिन थे 

कभी कड़वी यादें 
मीठी बेर सी लगी 
वो सबकुछ भूला के बस प्यार में गुम हो जाने के दिन थे 

जिगर पर चोट लगे थे तमाम 
बस दगा अपनों ने नही किया था 
यु कहे तो 
वही सबसे खूबसूरत शक्ल थी जिन्दगी की 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 28 अप्रैल 2019

दर्द भरा सफ़र

वो मेरे बिन अकेली होगी 

मैं उसके बिन अकेला हो गया हूँ न 

हमे चाँद पर जाना था मगर 
इससे पहले कि हम आसमान में चढ़ते 
हमारे नीचे की जमीन 
हमारे अपनों ने खींच ली 

बड़ा दर्द भरा सफ़र
रहा 
बिछड़ने के बाद का 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बाबा तुम भूल गये क्या !

बाबा तुम भूल गये क्या !
बिटियाँ का देश 

नही भूले होंगे सुबह-शाम पान चबाना 
मूछें ऐठकर अम्मा-भैया पर रौब जमाना 

घर से निकलने से पहले नही भूलते होंगे 
भगवान को फूल चढ़ाना 

फूल भी अड़हुल के तोड़ लाते होंगे 
मुँह अँधेरे 
तड़के में टहलने से लौटते 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

एक तुम्ही थी

तुमसे दूर होने के बाद 
सदा 
ये एहसास रहा 
एक तुम्ही थी जो मुझे अच्छे से समझती थी 

जानती थी हर वो बातें 
जो हरकिसीसे छिपाए रखा था मैंने 

फिर कब मिलना नसीब होगा 
यह सवाल 
मेरे दिलोदिमाग से टकराता रहता है 
दो दीवारों के बीच फेंके गये गेंद की तरह 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है

तुम्हें जान कहते थे हम अपनी

मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर 
भी 
बेघर हूँ 

सारा संसार अपनापन दिखाता था 
जब पहले-पहल हम मिले थे 

गीत नुसरत फतेह अली खान का 
और चित्र राजा रवि वर्मा का 
सुना 
देखा 
सराहा करते थे 

अब बात और है 
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो 
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है 
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 21 अप्रैल 2019

आदमी अकेले जीना नही चाहता

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आदमी अकेले आता है 
और अकेले जाता है 

लेकिन अकेले जीना नही चाहता 
ना जाने क्यों !

वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का 
और खुद ही फँसता जाता है 

उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है 
उतना ही उलझता जाता है 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

तेरी-मेरी कहानी

तेरी-मेरी कहानी 
गहन चुप्पी में दफन होती जा रही है 

सच और झूठ का बहुत ज्यादा था पहले फ़ासला
अब सिकुड़कर एक हुआ जा रहा है 

किससे कहे 
किससे छुपा ले 
आपबीती 

वो आपबीती जो बीतकर भी 
नही बीती है आजतक 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...