गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

शिशिर सिरहाने तक

Art by Ravindra Bhardvaj
शिशिर सिरहाने तक आ पहुँचा है..

सूरज भी 

अब देर से जगता है 

'सो ले 

कुछ देर और..'
कभी मैं 
तो कभी वो कहे जा रही है-

जॉन डन की कविता 'द सन राइजिंग'

तैरने लगी है 
शब्दों की मछलियाँ बनकर 
पुरे कमरे में.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज  

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

समझ में नही आया..

Art by Ravindra Bhardvaj
मेरा अस्त 
जबरन किया तुमने.


तुम्हारे अलावा था ही कौन 

मुझे समझनेवाला.


मेरा प्यार कि तेरा प्यार 

समझ में नही आया.. 
एक तरफा था 
कि दो तरफा. 
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

फूलों का कांटो का संग है

Art by Ravindra Bhardvaj 
फूलों का कांटो का संग है 


मेरे सबसे अजीज दुश्मन !

मेरे गम से 
क्या तेरा गम कम है !


तू रोक दे 

कोड़े बरसाना 
मुझपर 
दशरथ मांझी का सा फर्ज है !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

एक नदी और दो किनारा


एक नदी 

और दो किनारा 


दूर 

बड़ी दूर 
है मंजिल 
नदी की 

लेकिन 
बिना किनारे के 
उसकी बहाव नामुमकिन है !


फिरभी 

बहे जा रही है.. वो 
सिकुड़कर, ठिठुरकर
दोनों ही किनारों से 


दोनों ही किनारे 

सूखे है, प्यासे है 
पथरा सी गई है उनकी आँखे 
वस्ल की बरसात की राह तकते-तकते.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

रविवार, 9 दिसंबर 2018

रुक जाओ ना

मैंने तो ये सोचा ही नही था 
तुम आई हो इसबार भी चली जाओगी 

होठो पर हँसी रखकर मेरे 
जेहन में लिखकर अल्फाज़ प्यार के 
कल चली जाओगी न 

ना जाना 
मुझे छोड़कर तन्हा 
तन्हा सफर नही कटता
यादें कटती है 

होठो पर 
होठ धर दो अपने 
बाहों में सिमट जाओ 
यू कि पूरी दुनिया लगु मैं तेरी 

तू मुझपे इतना क्यू बिफरती है 
मैं क्या कोई अजनबी हू 
नही न 
तब फिर 
रुक जाओ ना 
इस एक जनम के लिए 

प्लीज..
अगले जनम का मैं नही जानता.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

गूंज रही है शहनाई..

Art by Ravindra Bhardvaj 
गूंज रही है शहनाई 
हवाओं में 

बचपन के मीत,
प्रीत 
बिछुड़ेंगे कल 

कल के बाद 
पलको पर रह जायेंगी याद भर 
घर-आंगन-मुंडेर की..

और आँखों में आँसू होंगे 
ख़ुशी के कि गम के 
ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल होगा.. 
कल के बाद.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज




गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

अच्छा लगता है

जाने से पहले 
हाथ हिलाना हवा में 
बाय-बाय करने को मुझे 
अच्छा लगता है 

अच्छा लगता है 
तुम्हारा चेहरा देखकर 
विदा लेना.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...