सोमवार, 8 अप्रैल 2019

रोकर ही सुकून आता हो जैसे

वो मुझे रुलायेगी 
मैं उसे 

रोकर ही सुकून आता हो जैसे 

रिश्ते बनते हैं 
रिश्ते बिगड़ते है 
पर हरेक रिश्ते की बुनियाद 
जस की तस होती है 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

इन कजरारी आँखों ने - 2

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह का समन्दर दिखाए 
जिसमे डुबकी अनायास मैं भी नही लगाना चाहता था 
मगर तुमने तो मजबूर ही कर दिया 

मेरा जीवन सार्थक न लगा 
मुझे ही 
जब उसी समन्दर में रक्त दिखे उनके 
जो फँसकर मर चुके थे 
मुझसे पहले कई

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

इन कजरारी आँखों ने - 1

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे 
पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं इनमे 
मुझे दीखते

मुझे दीखते 
ये  तुम्हारी कजरारी आँखें 
जंगल में लगी आग की तरह 
फैलाती है  
बेचैनी 
मुझमें 

मैं कहाँ चला जाऊ 
कि इनसे सामना ना हो कभी 
यही सोचता रहता हूँ ..

समझ से परे है यारों को भी समझा पाना 
कि डाकूओं की टोली आती हो जैसे 
दिन-दहाड़े 
मुझे लूटने 
हाँ, तुम्हारी ही ये कजरारी आँखें  !

जबकि मेरे पास कुछ भी नही बचा 
फिरभी 

-रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

उसे भूल जाओ

बुरे सपने की तरह उसे भूल जाओ 

हर वो चीज भूल जाओ 
जो तुम्हे सताती है बेहद 

और वो वादें भी 
और वो कसमें भी 
जो उसने खायी थी 
तुम्हें खुश रखने के लिए 

अब वो नही लौटेगी 
जान लो तुम ये 
जी करे तो 
गाँठ बाध लो 
कि वो नही आयेगी अब कभीभी लौटकर 

चित्र और कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

सुबह जो आती है आशा की बरसात तुम !

तुमने मुझे अपनेपन के बाहों में जबसे भरा 
मैं गदगद हो 
सबसे बोलता-बतियाता फिरता हूँ.. 

कुछ ना कहा तुमने 
कुछ ना कहा मैंने 
फिरभी हम घुलने-मिलने लगे है 
प्रेम के अनदेखे, अनोखे रंगो में 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


बुधवार, 3 अप्रैल 2019

जरूरी था

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जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते 

राज जो दिल में दबा रखा था हमने 
जरूरी था उसका खुलना.. 

आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही 
जबसे तुम फिसल गये 
मेरे आस-पास से 
काई पर पड़ते ही पैर की तरह 

बेबस है 
लाचार हो गई हैं जिन्दगी 
किसी एक के ना मिलने के वजह से 
नाहक ही 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

औरत ना होती तो

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औरत ना होती तो 
प्यार ना उपजा होता मर्द के अंदर 

नदियाँ ना होती तो 
सागर रेगिस्तान की तरह तपता रहता 

ह्दय में पीड़ा का मंथन ना होता तो 
कोई क्यों सृजता कविता !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...