बुधवार, 19 जून 2019

उड़ जाओ परिंदों

उड़ जाओ परिंदों 
बहेलिया हमी लोगों के बीच बैठा है 

तुम फर्क नही कर पाओगे कि 
कौन यहाँ चोर है और कौन साहू 

शक की कोई गुंजाइश ही नही उठती 
फिर तो

इंसानो में दरिंदगी इतनी पली-बढ़ी है कि 
अभीभी मानव का आदिम होने का ही आभास होता है 

 नृशंसता और बर्बरता का जमाना गया नही है  
जरा सोचिए तो 
कितनी सभ्यताएं हम लांघ चुके है 
फिरभी सभ्य हुए है हम कितने !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 जून 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आभार आदरणीय आपका सादर
      इस रचना को 'पाँच लिंको का आनंद" पर साझा करने के लिए 🙏

      हटाएं
  2. बहुत सार्थक सृजन पाखंडी मानव मुखौटे लगाये खड़ा हर दिशा में ।

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  3. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

    जवाब देंहटाएं

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