प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
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सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...

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बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं...
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सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
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तुम्हें भूला सकना मेरे वश में नही नही है मौत भी मुकम्मल अभी रस्ते घर गलियाँ गुजरती है तुझमें से ही मुझमे ...
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 14 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1308 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
सहृदय आभार............आदरणीय
हटाएंइस रचना को "पाँच लिंकों का आनंद" में संकलित करने के लिए
बहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार ....आदरणीया
हटाएंवाह ¡¡
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर थोड़ी में बहुत कुछ कहता।
जी अत्यंत आभार...... आदरणीया
हटाएंरुमानी कविता... अच्छी लगी रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार...... आदरणीया
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
जी बहुत-बहुत आभार.... आदरणीया
हटाएंसरसों का जोबन देखो
जवाब देंहटाएंऔर आम पर बौर ...बहुत सुन्दर
सादर
जी बहुत-बहुत आभार..... आदरणीया
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंआभार .......आदरणीय सादर
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