शनिवार, 13 अप्रैल 2019

मुझे नही मरना था

मुझे नही मरना था 
घुट-घुटकर 

मुझे जीना था तेरे प्यार में भी 
जी खोलकर 

मगर 
तूने आहिस्ता-आहिस्ता खंजर भोका 
मेरे उसी हृदय में 
जिसमे प्रेम के पुष्प खिल चुके थे 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हें 
महक सुंघाने के लिए 

मैं गवार था 
मगर उतना भी नही कि 
नजरों से गिराकर अपने 
मेरा जीना दुश्वार किए 
( समझ न सकू )

फिरभी मैं चुप रहा 
जबकि मैं चुप रहनेवालो में से नही हूँ 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

जीने दो मुझे

Image result for वृद्ध भिखारी
जीने दो मुझे 
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ 

खाने को भोजन नहीं मिलता 
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ 

आसमान का छत 
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है 
गर्मीवाली रातों में 
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें 
तन , मन को काट, बाँट देती है 
खुली हवा में 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

जिसे सबकुछ दिया

जिसे सबकुछ दिया 
उसे कितना पाया तुमने 
बोलो 
बोलो न 
कितना !

जिसे तुम नही मिले 
कतरा भर 
उसे क्या मिला 
भला तुमसे.. 

अब कहते हो 
मुझसे प्यार नही होता 
यार जबसे उसे खोया 

तो क्यों ना 
आज तुम मुझे खो दो 

आज से 
मैं भी कहूँगा 
मुझसे प्यार नही होगा अब किसीसे 
तुम्हारे बाद 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

मुझे तेरी चाहत की कसम

मुझे तेरी चाहत की कसम 
जबतक जिऊंगा 
तुम्हारे इश्क़ में जिऊंगा 

मुझे किसकी परवाह किसकी फ़िक्र 
जबतक ना मौत आये 
तुम्हे अपने सीने से लगाने के लिए 
तकदीर से लडूंगा 

मानांकि 
मेरा कोई हक नही बनता तुमपर 
पर तुम्हे छोड़ दू 
ये सोचकर 
कि मेरे गैर तुम्हारे अपने तुम्हारा ख्याल रखेंगे 
ऐसी बातों पर मुझे विश्वास नही तनिक 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

रोकर ही सुकून आता हो जैसे

वो मुझे रुलायेगी 
मैं उसे 

रोकर ही सुकून आता हो जैसे 

रिश्ते बनते हैं 
रिश्ते बिगड़ते है 
पर हरेक रिश्ते की बुनियाद 
जस की तस होती है 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

इन कजरारी आँखों ने - 2

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह का समन्दर दिखाए 
जिसमे डुबकी अनायास मैं भी नही लगाना चाहता था 
मगर तुमने तो मजबूर ही कर दिया 

मेरा जीवन सार्थक न लगा 
मुझे ही 
जब उसी समन्दर में रक्त दिखे उनके 
जो फँसकर मर चुके थे 
मुझसे पहले कई

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

इन कजरारी आँखों ने - 1

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे 
पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं इनमे 
मुझे दीखते

मुझे दीखते 
ये  तुम्हारी कजरारी आँखें 
जंगल में लगी आग की तरह 
फैलाती है  
बेचैनी 
मुझमें 

मैं कहाँ चला जाऊ 
कि इनसे सामना ना हो कभी 
यही सोचता रहता हूँ ..

समझ से परे है यारों को भी समझा पाना 
कि डाकूओं की टोली आती हो जैसे 
दिन-दहाड़े 
मुझे लूटने 
हाँ, तुम्हारी ही ये कजरारी आँखें  !

जबकि मेरे पास कुछ भी नही बचा 
फिरभी 

-रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...